सात मार्च को फिरोजपुर विजिलेंस ने रेलवे भर्ती के नाम पर ठगी – Fraud in the name of Railway Recruitment करने वाले एक आरोपी दलजीत सिंह वासी दुलचीके को काबू किया है। जबकि इसके दो साथी दिल्ली डीआरएम में कार्यरत हेड क्लर्क रवि मल्होत्रा व जोगिंदर सिंह फरार हैं।
Fraud in the name of Railway Recruitment
रेलवे में भर्ती के नाम पर नौजवानों से ठगी का मामला गर्माता जा रहा है। इस मामले के पीड़ितों का कहना है कि उन्होंने डीजल लोकोमोटिव वर्क्स वाराणसी में बाकायदा ट्रेनिंग ली है। ट्रेनिंग के दौरान उनके साथ ठगी करने वाले गिरोह का एक सदस्य भी रहता था। नौकरी के नाम पर ठगी का शक न हो इसके लिए वाराणसी के डीआरएम ऑफिस में उन्हें पहचान पत्र भी दिए गए। यही नहीं जिस रजिस्टर पर हस्ताक्षर कराए गए, उसमें करीब पांच सौ युवाओं के फोटो लगे थे।
रेलवे भर्ती के नाम पर नौजवानों से ठगी – Cheating with the name of Railway Recruitment
रेलवे भर्ती के नाम पर ठगे गए नौजवानों की दास्तान सुनकर किसी के भी पैरों तले से जमीन खिसक जाएगी। वाराणसी स्थित रेलवे के डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (डीएलडब्ल्यू) में दो से तीन माह की ट्रेनिंग लेने और दिल्ली में रेलवे सेंट्रल अस्पताल से मेडिकल होना कोई छोटी बात नहीं है। इससे एक बात साबित होती है कि गिरोह की जड़ें पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश तक फैली हुई हैं। जांच में स्पष्ट होगा कि इस हेराफेरी में रेलवे के कौन लोग शामिल है।
सात मार्च को फिरोजपुर विजिलेंस ने रेलवे भर्ती के नाम पर ठगी करने वाले एक आरोपी दलजीत सिंह वासी दुलचीके को काबू किया है। जबकि इसके दो साथी दिल्ली डीआरएम में कार्यरत हेड क्लर्क रवि मल्होत्रा व जोगिंदर सिंह फरार हैं। अब विजिलेंस के पास ठगी के शिकार लोगों के नाम की सूची 114 से भी लंबी होती नजर आ रही है।
पीड़ित साहिल मोंगा का कहना है कि जब उसे वाराणसी ट्रेनिंग के लिए भेजा तो उसके साथ गिरोह का सदस्य हरजिंदर सिंह व बोहड़ सिंह वासी गांव अलीके गया था। वाराणसी पहुंचते ही आरोपी डीआरएम आफिस ले गए, वहां एक रजिस्टर पर उसका फोटो लगाया और हस्ताक्षर करवाए, फिर उसे पहचान पत्र दिया। सहिल ने बताया कि रजिस्टर पर तकरीबन पांच सौ नौजवानों के फोटो लगे थे। इसके बाद उसे वहां बने डीएलडब्ल्यू ट्रेनिंग सेंटर ले गए। यहां भी उसके साथ हरजिंदर सिंह रहता था। पांच से छह घंटे ट्रेनिंग के बाद अपने कमरे में चला जाता था।
दिल्ली रेलवे अस्पताल में डॉक्टर ने ही उसका मेडिकल किया था। पीड़ित चांद अरोड़ा का कहना है कि उसने भी डीएलडब्ल्यू में ट्रेनिंग ली है। वह ढाबे पर भोजन करता था और एक आश्रम में रहता था। उनका लगभग छह नौजवानों को ग्रुप था। ये लोग ग्रुपों में ट्रेनिंग वास्ते भेजते थे। दस्तावेजों पर रेल अधिकारी मोहन पति त्रिपाठी, मंजूरा सक्सेना व दविंदर कुमार के हस्ताक्षर व रेलवे की मोहर लगी है। दस्तावेजों के बीचोंबीच भी नार्दन रेलवे छपा हुआ है।
मेजर सिंह कहता है कि उसने अपने पीएफ फंड से छह लाख, जमीन बेच कर और लोगों से उधारी लेकर बेटे को रेलवे में नौकरी लगाने के लिए आरोपी दलजीत सिंह वासी दुलचीके जिला फिरोजपुर को बारह लाख रुपये दिए थे। चार माह तक तो पुलिस ने उनकी बात नहीं सुनीं। जब अपनी बिजली विभाग की यूनियन की मदद ली तो पुलिस ने आरोपी दलजीत के खिलाफ मामला दर्ज किया था। बेटा दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहा है। इसी तरह पीड़ित दीपक गंबुर कहना हैं कि आरोपी दलजीत के साथी जोगिंदर सिंह को कुछेक माह पूर्व मोगा से पकड़कर फिरोजपुर पुलिस के हवाले किया था, सियासी दबाव के चलते पुलिस ने उसे छोड़ दिया था।
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