मेले और बाजार में रंग-बिरंगे गुब्बारों को देख कर ऐसा लगता है कि केवल बच्चों के देखने भर का एक खिलौना है। जबकि गुब्बारों का इतिहास – Use and Benefits of Balloons जाने तो पता चलता है कि गुब्बारा एक खिलौना ही नहीं बल्कि इसके बहुत सारे उपयोग भी हैं गुब्बारे को लोग सजावट के लिए उपयोग करते हैं तथा आजकल कई लड़ाइयां में भी गुब्बारे का उपयोग होने लगा है तो चलिए जानते हैं गुब्बारे के बारे में ।
Use and Benefits of Balloons
गुब्बारा क्या है?
एक गुब्बारा एक लचीला बैग है कि इस तरह के रूप में एक गैस से फुलाया जा सकता है, है हीलियम , हाइड्रोजन , नाइट्रस ऑक्साइड , ऑक्सीजन , और हवा । विशेष कार्यों के लिए, गुब्बारों को धुएं, तरल पानी , दानेदार मीडिया (जैसे रेत, आटा या चावल), या प्रकाश स्रोतों से भरा जा सकता है। आधुनिक समय के गुब्बारे रबर , लेटेक्स , पॉलीक्लोरोप्रीन या नायलॉन के कपड़े जैसी सामग्रियों से बनाए जाते हैं , और कई अलग-अलग रंगों में आ सकते हैं। कुछ शुरुआती गुब्बारे सूखे जानवरों के मूत्राशय से बने होते थे , जैसे कि सुअर का मूत्राशय. कुछ गुब्बारों का उपयोग सजावटी उद्देश्यों या मनोरंजक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जबकि अन्य का उपयोग व्यावहारिक उद्देश्यों जैसे मौसम विज्ञान , चिकित्सा उपचार , सैन्य रक्षा या परिवहन के लिए किया जाता है । कम घनत्व और कम लागत सहित एक गुब्बारे के गुणों ने अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला को जन्म दिया है।
गुब्बारे का इतिहास – History of Balloons
गुब्बारे की खोज
मेले और बाजार में रंग-बिरंगे गुब्बारों को देख कर ऐसा लगता है कि केवल बच्चों के देखने भर का एक खिलौना है। जबकि गुब्बारों का इतिहास जाने दो पता चलता है कि गुब्बारों से लड़ाई अभी लड़ी गई है। गुब्बारों की खोज का किस्सा भी अत्यधिक रोचक है। दरअसल गुब्बारे की शुरुआत 17 वीं शताब्दी मैं फ्रांस में दो भाई रहते थे एक का नाम स्टेफन और दूसरे का नाम जोसेफ था। दोनों फ्रांस के एनोएन नगर में रहते थे। दोनों भाइयों की इच्छा थी कि उड़ने की कला सीखी जाए। उन्होंने सोचा यदि कागज का एक थैला बनाकर उसमें भाप भर दी जाए तो हवा में उड़ सकते हैं।
गुब्बारे का आविष्कार
5 जून 1783 का दिन था। कागज का 10 मीटर व्यास का एक खोखला गोला बनाकर इसे एक खंभे के ऊपर बांध दिया और नीचे भूसा जलाया गया। भूसे के जलने से धूमा बना वह कागज के खोखले गोले में समाता गया। धुआं भरने से गोला हल्का होने लगा और कुछ ही मिनटों में 1800 मीटर की ऊंचाई पर जा पहुंचा। मगर वह जल्दी ही वापस नीचे गिर गया।
हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल ” चार्ल्स “
इस प्रयोग की खबर एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक चार्ल्स को लगी। चालक ने इस प्रयोग को दोहराने का निश्चय किया। चार्ल्स को पता था कि धुए के बदले यदि हाइड्रोजन गैस भरी जाए तो गुब्बारा ज्यादा ऊपर तक जाएगा क्योंकि हाइड्रोजन गैस हवा से साढ़े चौदह गुना हल्की होती है। इसलिए चार्ल्स ने धुएं के बदले हाइड्रोजन गैस का उपयोग किया गया।गुब्बारा उड़ाने के लिए चंदा इकट्ठा किया गया उसने अपने साथियों की मदद से 4 मीटर व्यास का रेशम का एक गुब्बारा बनाया और अंदर से उस पर गोंद पोत दिया ताकि गैस बाहर न निकल जाए। उस समय हाइड्रोजन गैस लोहे पर गंधक के अम्ल की प्रक्रिया से बनाई जाती थी। 23 अगस्त 1783 को एक दिन पूर्व रेशम के गोले को 3 किमी दूर एक मैदान में ले जाया गया। वहा उसे देखने के लिए लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। लोग रहस्यमय निगाहों से गुब्बारे को देख रहे थे।
गुब्बारे का उपयोग – Use and Benefits of Balloons
डेको-ट्विस्टिंग शैली को प्रदर्शित करने वाली स्टैकिंग और ट्विस्टिंग तकनीकों के संयोजन के साथ गुब्बारों से सजावट।
गुब्बारों का उपयोग जन्मदिन की पार्टियों, शादियों, कॉर्पोरेट समारोहों, स्कूल के कार्यक्रमों और अन्य उत्सव समारोहों को सजाने के लिए किया जाता है। जो कलाकार गोल गुब्बारों का निर्माण करने के लिए उपयोग करते हैं उन्हें “स्टैकर्स” कहा जाता है और जो कलाकार बनाने के लिए पेंसिल गुब्बारों का उपयोग करते हैं उन्हें “ट्विस्टर्स” कहा जाता है। आमतौर पर हीलियम बैलून सजावट के साथ जुड़ा हुआ है, हाल ही में गुब्बारा डेकोरेटर आपूर्ति में सीमित हीलियम के गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन के कारण हवा से भरे गुब्बारे की सजावट के निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं। गुब्बारे की सजावट के सबसे सामान्य प्रकारों में मेहराब, स्तंभ, केंद्र के टुकड़े, गुब्बारे की बूंदें, मूर्तियां और गुब्बारे के गुलदस्ते शामिल हैं। बैलून ट्विस्टिंग के साथ-साथ बैलून स्टैकिंग के लिए बढ़ी हुई योग्यता के साथ, डेको-ट्विस्टर का उदय अद्वितीय और दिलचस्प बैलून डेकोर विकल्प बनाने के लिए स्टैकिंग तकनीकों के साथ-साथ ट्विस्टिंग तकनीकों के संयोजन के रूप में प्रकट होता है।
जासूसी गुब्बारे का इतिहास
दरअसल इस तरह के गुब्बारे सबसे पहले साल 18 साल के आसपास बनाए गए थे इसका इस्तेमाल सबसे पहले फ्रांस ने फ्रैंको ऑस्ट्रेलियाई युद्ध की निगरानी के लिए 18 सो 59 में किया था इसके बाद प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जासूसी गुब्बारे का इस्तेमाल करना आम हो गया।
जासूसी गुब्बारा क्या है? – what is a spy balloon
दरअसल, कैप्सूल के आकार के ये गुब्बारे कई वर्ग फीट बड़े होते हैं। ये आमतौर पर जमीन से काफी ऊंचाई पर उड़ने की क्षमता रखते हैं, जिसकी वजह से इनका ज्यादातर इस्तेमाल किसी क्षेत्र विशेष की मौसम से संबंधित जानकारी जुटाने के लिए किया जाता रहा है। हालांकि, आसमान में जबरदस्त ऊंचाई पर उड़ने की अपनी इन्हीं क्षमताओं की वजह से इनका इस्तेमाल जासूसी के लिए भी किया जाता है।
जासूसी गुब्बारों की खासियत क्या है? – Features of Spy Balloons
जासूसी गुब्बारे जमीन से 24000 से 37000 फीट की ऊंचाई तक आसानी से उड़ सकते हैं, जबकि चीन का जो जासूसी गुब्बारा अमेरिका के ऊपर उड़ रहा था, वह 60000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था।
जमीन से इनकी डिस्टेंस इतनी ज्यादा होने के कारण, इनकी निगरानी कर पाना काफी मुश्किल काम होता है।
इनके उड़ने की यह रेंज कमर्शियल विमानों से काफी ज्यादा होती है। अधिकतर कमर्शियल विमान 40000 फीट की ऊंचाई तक नहीं जा पाते हैं।
इतनी ज्यादा रेंज पर उड़ान भरने की क्षमता फाइटर जेट्स की होती है, जो कि 65000 फीट तक उड़ सकते हैं। हालांकि, कुछ जासूसी विमान 80000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने में सक्षम होते हैं।
गुब्बारों में कौन सी गैस भरी जाती है?
ललित मिंज का कहना है कि उड़ने वाले गुब्बारों में हीलियम व हाइड्रोजन गैस का प्रयोग होता है। लेकिन ये दोनों गैस महंगी होने के कारण गुब्बारे वाले इनकी जगह कार्बाइड से बनने वाली सस्ती गैस एसीटीलीन का इस्तेमाल करते हैं।
गुब्बारे की विशेषता क्या है?
गुब्बारा एक प्रकार की रबड़ की बनी हुई थैली है जिसमें हवा से कोई हलकी गैस भरने से वह हवा में उड़ने लगती है।
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