भारतीय सांस्कृतिक विरासत कढ़ाई बुनाई कला
हमारा देश कढाई-बुनाई क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखता था।
ढाका के मलमल का थान अंगूठी में से निकल जाता था और दियासलाई की डब्बी में भी आ सकता था।
यह कला लगभग 850 वर्षों से भी अति प्राचीन होना माना जाता है।
जटिल और समय लेती हुई यह कला वर्तमान समय में गिन-चुने कारीगरों के पास ही है।
रेशमी वस्त्र को पाटण का पटोला कहते है।
यह कढ़ाई बुनाई कला का अद्भुत नमूना है।
इस कला को ऊन और कुरुस की सहायता से बनाया गया है।
यह सूती वस्त्र पर रेशम के धागे की कढ़ाई बुनाई कला है।
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