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भारतीय सांस्कृतिक विरासत की हस्तकला – Handicraft of Indian Cultural Heritage

Handicraft of Indian Cultural Heritage

प्राचीन भारतीय साहित्य में चौंसठ कलाओं के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इनमें से कुछ कलाएँ विशिष्ठ थी। जिसमें हस्तकला, हुनरकला, कारीगरी, चित्रकला, शिल्प-स्थापत्य कला, संगीत कला, साहित्य कला, नृत्य कला आदि का समावेश करते हैं।

इस पोस्ट में हम इनमें से कुछ कलाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करेगें। विविध हस्तकला कारीगरी के संदर्भ में भारत अत्यंत समृद्ध देश है। कहीं बुनाई काम है तो कहीं कढाई काम, कहीं मोती काम तो कहीं माटीकाम, किसी जगह धातु पर नक्काशी काम तो कहीं काँचकाम। इस प्रकार भारत विविध कलाओं से समृद्ध है।

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मिट्टीकाम कला

भारतीय सांस्कृतिक विरासत की हस्तकला - Handicraft of Indian Cultural Heritage
Handicraft of Indian Cultural Heritage

मिट्टी और मानक का प्राचीन काल से गहरा संबंध रहा है। जन्म से मृत्युपर्यन्त मानव का पूरा जीवन मिट्टी के आस-पास ही व्यतीत हो रहा है। प्राचीन काल में जब किसी प्रकार की धातु की खोज नहीं हुई थी, तब मिट्टी से बनी हुई वस्तुओं का विशेष उपयोग होता था। जिनमें खिलौने, मटके, दीए, कुल्हड मिट्टी के चूल्हा जैसी वस्तुओं का मुख्यतः समावेश होता था। कुम्हार द्वारा बनाये हुए पात्रों या वस्तुओं का उपयोग घी, दूध, दहीं, छाछ, तेल, एवम् अनाज संग्रह के लिये होता था। दीवारें, घर, कुवाँ और दालान आदि भी मिट्टी से बनते थे ।

भारतीय सांस्कृतिक विरासत की हस्तकला - Handicraft of Indian Cultural Heritage
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प्राचीन काल से ही भारत कच्ची एवम् पकी मिट्टी (टेराकोटा) के बर्तनों एवम् वस्तुओं के उत्पादन के लिये प्रख्यात था। जिसका अंदाजा हमें कालीबंगान (राजस्थान) जैसे अनेक स्थलों से प्राप्त हुए प्राचीन काल में मिट्टी के खिलौने तथा अन्य चीज वस्तुओं के अवशेषों से मिलता है। मिट्टीकाम की यह परंपरा प्राचीन काल से मध्य काल और अर्वाचीन काल तक कम ज्यादा प्रमाण में जारी रही है।

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कढ़ाई-बुनाई कला

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हमारा देश कढाई-बुनाई क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखता था। ऐसा कहा जाता था कि ढाका के मलमल का थान अंगूठी में से निकल जाता था और दियासलाई की डब्बी में भी आ सकता था। तदुपरांत कुछ प्रदेशों के गलीचे, विविध वस्त्रपरिधान का भरतकाम, कढाईकाम आदि का भी विशिष्ट स्थान था। जिसमें गुजरात में आया हुआ पाटण का पटोला, राजस्थान की बाँधनी, काँजीवरम की विशिष्ट साड़ी एवम् कश्मीरी वस्त्रों की विविध कढ़ाई कारीगरी का समावेश होता है ।

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सोलंकी युग के स्वर्णकाल के दौरान गुजरात ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास किया था। सिद्धराज जयसिंह के शासनकाल के दौरान उनकी राजधानी पाटण में अनेक कारीगर आकर बसे । इन्होंने उस दौरान पाटण को विश्वभर में सुविख्यात बनाया। उसमें भी विशेष तौर पर पाटण पटोले के लिये विख्यात बना। पाटण के कुछ कारीगर तो पटोले की बुनाई के श्रेष्ठ कारीगर थे।

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उनकी यह कला लगभग 850 वर्षों से भी अति प्राचीन होना माना जाता है। बहुत जटिल और समय लेती हुई यह कला वर्तमान समय में गिन-चुने कारीगरों के पास ही है। पाटण से उत्पादित होता हुआ रेशमी वस्त्र को पाटण का पटोला कहते है। इस प्रकार की साड़ी में दोनों तरफ एक ही आकार प्रदर्शित होता है इसलिये दोनों तरफ से पहन सकते हैं। ऐसा पटोला कई वर्षों तक फटता नहीं है और रंग भी जाता नहीं है।

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मोती काम और मीना कारीगरी

भारत के तीनों ओर विशाल समुद्री किनारा होने से प्राचीन काल से भारत में हीरा मोती का उपयोग प्रचलित है। भारत में हीरा मोती प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। दुनिया में प्रसिद्ध हो चुके हीरे जैसे की होचमुघल, कोहिनूर आदि भारत से ही प्राप्त हुये हैं। भारत के लोग हीरे और मोती के अलंकारो के शौकीन हैं इसलिये इसमें विविधता दिखायी देती है। भारत में आभूषण के लिये प्रचुर मात्रा में हर साल सोने का उपयोग होता है। भारत में बने हुए हीरे जड़ित आभूषणों की शुरू से खूब मांग रही है।

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हीरा माणेक, मोती, पन्ना, नीलम, पुखराज जैसे अनेक रत्नों का उपयोग वस्त्राभूषणों की शोभा बढाने के लिये होता है। प्राचीन काल में इन रत्नों का उपयोग राजा-महाराजाओं के सिहासनों, मुकुटों और बाजूबंध जैसे अलग-अलग आभूषण बनाने में मोती काम गुजरात की विशेषता रही है। मोती के सुंदर बंदरवार, पर्दे, खिड़की, चाकडे, विवाह के नारियल, पालना, झुनझुना ईडूरी, बैल के लिये सुशोभित मोडियां, सींग के झूल, पंखे आदि बुनाई की कला अद्वितीय है ।

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गहने बनाने में भारत सदियों से अग्रसर रहा है। आम आदमी से लेकर अमीरों नवाबों के लिए तमाम प्रकार के गहने भारतमें बनते हैं। गुजरात का खम्भात मुख्यतः अकीक के गहनों के लिए प्रसिद्ध है।सभी अलंकारों में रत्न जडित आभूषण मूल्यवान माने जाते हैं। ये सभी आभूण अधिकांशतः हस्त कारीगरी से बनाये जाते थे।

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सम्पूर्ण विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो सोना-चाँदी के अलंकारों में (अंगूठी, कंगन आदि) लाल, नीले, पीले जैसे चमकीले रंग भरने की कला/जयपुर, दिल्ली, वाराणसी, लखनऊ और हैदराबाद की मीनाकारी तो विश्वभर में प्रसिद्ध है। विशेषतः जयपुर और दिल्ली नीले रंग की मीनाकारी के लिए, वाराणसी गुलाबी तथा हैदराबाद काले रंग की मीनाकारी के लिए आजभी विश्वभर में प्रसिद्ध केन्द्र हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

भारत के सांस्कृतिक विरासत की ललित कलाएं – Arts of Cultural Heritage of India.

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Arts of Cultural Heritage of India.

 

 

 

 

 

 

RK16

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