शक साम्राज्य का इतिहास, Know in Detail, – History of Shak Dynasty.

शक साम्राज्य का इतिहास, Know in Detail, – History of Shak Dynasty.

शक साम्राज्य :-
शक साम्राज्य एक प्राचीन साम्राज्य था जो की भारत के एक बड़े भू-भाग में शासन किया था। शक प्राचीन मध्य एशिया में रहने वाली स्किथी लोगों की एक जनजाति या जनजातियों का समूह था। शकों ने ही ई. 78 से शक संवत शुरू किया था। महाभारत में भी शकों का उल्लेख है। शुंग वंश के कमजोर होने के बाद भारत में शकों ने पैर पसारना शुरू कर दिया था।

 

Shakas Dynasty
                                                                                                       Shakas Dynasty

शकों का भारत के इतिहास पर गहरा असर रहा है। हालाँकि इनकी सही नस्ल की पहचान करना कठिन रहा है क्योंकि प्राचीन भारतीय, ईरानी, यूनानी और चीनी स्रोत इनका अलग-अलग विवरण देते हैं। फिर भी अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि ‘सभी शक स्किथी थे, लेकिन सभी स्किथी शक नहीं थे’, यानि ‘शक’ स्किथी समुदाय के अन्दर के कुछ हिस्सों का जाति नाम था। स्किथी विश्व के भाग होने के नाते शक एक प्राचीन ईरानी भाषा-परिवार की बोली बोलते थे और इनका अन्य स्किथी-सरमती लोगों से सम्बन्ध था। यह युएझ़ी लोगों के दबाव से भारतीय उपमहाद्वीप में घुस आये और उन्होंने यहाँ एक बड़ा साम्राज्य बनाया। आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलंडर ‘शक संवत’ कहलाता है। बहुत से इतिहासकार इनके दक्षिण एशियाई साम्राज्य को ‘शकास्तान’ कहने लगे हैं, जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, सिंध, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा और अफ़्ग़ानिस्तान शामिल थे।

(शक और शाक्य दोनों में फर्क है। बौद्ध पाठ्यों में शाक्य मुख्यत: गौतम गोत्र के क्षत्रिय बताए गए हैं। शाक्य प्रथम शताब्दी ई.पू में प्राचीन भारत का एक जनपद था। यहां पर हम शाक्य की बात नहीं ‘शक वंश’ की बात कर रहे हैं।)

ऐसा कहा जाता है कि पुराणों अनुसार शक जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा नरिष्यंत से कही गई है। राजा सगर ने राजा नरिष्यंत को राज्यच्युत तथा देश से निर्वासित किया था। वर्णाश्रम आदि के नियमों का पालन न करने के कारण तथा ब्राह्मणों से अलग रहने के कारण वे म्लेच्छ हो गए थे। उन्हीं के वंशज शक कहलाए। महाभारत में भी शकों का उल्लेख है। शक साम्राज्य से संबंधित मथुरा के राजकीय संग्रहालय में मूर्ती, स्तंभ, सिंह शीर्ष स्तंभ, मुद्रा आदि कई वस्तुएं रखी हुई है। गार्गी संहिता, बाणभट्ट कृत हर्षचरित में भी शकों का उल्लेख मिलता है।

एक जैन जनश्रुति के अनुसार भारत में शकों को आमंत्रित करने का श्रेय आचार्य कालक को है। ये जैन आचार्य उज्जैन के निवासी थे और वहां के राजा गर्दभिल्ल के अत्याचारों से तंग आकर सुदूर पश्चिम के पार्थियन राज्य में चले गए थे। कालकाचार्य ने शकों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। कालक के साथ शक लोग सिन्ध में प्रविष्ट हुए और इसके बाद उन्होंने सौराष्ट्र को जीतकर उज्जयिनी पर भी आक्रमण किया और वहां के राजा गर्दभिल्ल को परास्त किया।

शक साम्राज्य का इतिहास, Know in Detail, – History of Shak Dynasty.

                                                                                                        Shakas Dynasty

 

इतिहासकार मानते हैं कि शक प्राचीन मध्य एशिया में रहने वाली स्किथी लोगों की एक जनजाति या जनजातियों का समूह था, जो सीर नदी की घाटी में रहता था। ‘युइशि’ लोग तिब्बत के उत्तर-पश्चिम में तकला-मकान की मरुभूमि के सीमांत पर निवास करते थे। युइशि लोगों पर जब चीन के हूणों ने आक्रमण किया तो उनको अपना स्थान छोड़कर जाना पड़ा। उन्होंने शकों पर आक्रमण कर उनका स्थान हड़प लिया तब शकों को अपना स्थान छोड़कर जाना पड़ा। हूणों ने युइशियों को धकेला और युइशियों ने शकों को। शकों ने बाद में बैक्ट्रिया पर विजय प्राप्त कर हिन्दूकुश के मार्ग से भारत में प्रवेश किया। बैक्ट्रिया के यवन राज्य का अंत शक जाति के आक्रमण द्वारा ही हुआ था। शकों ने फिर पार्थिया के साम्राज्य पर आक्रमण किया। पारसी राजा मिथिदातस द्वितीय (123-88 ईपू) ने शकों के आक्रमणों से अपने राज्य की रक्षा की। मिथिदातस की शक्ति से विवश शकों ने वहां से ध्यान हटाकर भारत की ओर लगा दिया।

 

भारत में शकों का शासन :-
संपूर्ण भारत पर शकों का कभी शासन नहीं रहा। भारत के जिस प्रदेश को शकों ने पहले-पहल अपने अधीन किया, वे यवनों के छोटे-छोटे राज्य थे,वह मगध साम्राज्य के अधीन नहीं थे। सिन्ध नदी के तट पर स्थित मीननगर को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। भारत का यह पहला शक राज्य था। इसके बाद गुजरात क्षेत्र के सौराट्र को जीतकर उन्होंने अवंतिका पर भी आक्रमण किया था। उस समय महाराष्ट्र के बहुत बड़े भू भाग को शकों ने सातवाहन राजाओं स छीना था और उनको दक्षिण भारत में ही समेट ‍दिया था। दक्षिण भारत में उस वक्त पांडयनों का भी राज था।

शुंग वंश के कमजोर होने के बाद भारत में शकों ने पैर पसारना शुरू कर दिया था। अन्य शक राज्यों के शासक क्षत्रप या महाक्षत्रप कहाते थे, जिससे यह परिणाम निकलता है कि वे स्वतंत्र राजा न होकर किसी शक्तिशाली महाराजा की अधीनता स्वीकार करते थे। शकों के इस महाराजा की राजधानी मीननगर ही थी। वहाँ के एक राजा का नाम मोअ था। पंजाब के जेलहम ज़िले में मैरा नामक गाँव के एक कुएँ से एक शिला प्राप्त हुई है, जिस पर उत्कीर्ण लेख से मोअ नाम के शक राजा का परिचय मिलता है। इसी प्रकार तक्षशिला के भग्नावशेषों में एक ताम्र-पात्र पर मोग नाम के एक शक राजा का उल्लेख है, जिसके नाम के साथ ‘महाराज’ और ‘महान’ विशेषण दिए गए हैं। सम्भवतः मोअ और मोग एक ही व्यक्ति के सूचक हैं। इस मोग के बहुत से सिक्के पश्चिमी पंजाब में प्राप्त हुए हैं, जो कि यवन सिक्कों के नमूने पर बने हुए हैं। इन सिक्कों का लेख इस प्रकार है – राजाधिराजस महतस मोअस। इस लेख से इस बात में कोई सन्देह नहीं रह जाता कि शक राजा मोअ या मोग की स्थिति क्षत्रप या महाक्षत्रप से अधिक ऊँची थी। वह राजाधिराज और महान् था, और शकों के अन्य राजकुल उसकी अधीनता स्वीकार करते थे। इस शक राजाधिराज का शासन पश्चिम में पुष्कलावती से लगाकर पूर्व में तक्षशिला और दक्षिण में सिन्ध तक विस्तृत था।

शक राजाओं ने गांधार, सिन्ध, महाराष्ट्र, मथुरा और अवंतिका आदि क्षे‍त्रों के कुछ स्थानों पर लंबे काल तक राज किया था। उज्जयिनी का पहला स्वतंत्र शक शासक चष्टण था। इसने अपने अभिलेखों में शक संवत का प्रयोग किया है। इसके अनुसार इस वंश का राज्य 130 ई. से 388 ई. तक चला, जब संभवतः चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इस कुल को समाप्त किया। उज्जैन के क्षत्रपों में सबसे प्रसिद्ध रुद्रदामा (130 ई. से 150 ई.) था।

                                                                                                            Shakas Dynasty

हालाँकि पहली सदी में ई. पू. के मध्यभाग में सातवाहन वंशी राजा गौतमीपुत्र सातकर्णि और मालवगण के प्रयत्न से शकों की शक्ति क्षीण होनी शुरू हो गई, और धीरे-धीरे उनके स्वतंत्र व पृथक् राज्यों का अन्त हो गया।

शक विदेशी समझे जाते थे यद्यपि उन्होंने शैव मत को स्वीकार कर किया था। शकों के अन्य राज्यों का शकारि विक्रमादित्य गुप्तवंश के चंद्रगुप्त द्वितीय ने समाप्त करके एकच्छत्र राज्य स्थापित किया। शकों को भी अन्य विदेशी जातियों की भाँति भारतीय समाज ने आत्मसात् कर लिया। शकों की प्रारंभिक विजयों का स्मारक शक संवत् आज तक प्रचलित है।

 

 

 

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