Why was there opposition to the Simon Commission?
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का दूसरा चरण संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति का संघर्ष तो है ही साथ साथ स्वतंत्रता प्राप्ति का संघर्ष भी है। इस संघर्ष में साइमन कमीशन का विरोध क्यों हुआ चलिए यह हम जान जानते हैं।
साइमन कमीशन का विरोध क्यों हुआ?
साइमन कमीशन (सन – 1927)
स्वराज्य दल के नेता, चितरंजनदास की मृत्यु से भारत की राजनीति में मानों सन्नाटा छा गया, परंतु नवम्बर, 1927 में जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक इंडियन स्टेच्युटरी कमीशन नियुक्त किया गया । इस कमीशन का उद्देश्य ( 1919 के मोन्टफर्ड ( मोन्टेग्यू-चेम्सफर्ड) सुधार को लागू किये जाने का अध्ययन करके भारत की प्रशासकीय व्यवस्था में सुधार करने के लिए सिफ़ारिश करना था ।
यह कमीशन भारत के लिए नियुक्त होने पर भी, उसमें एक भी सदस्य भारतीय नहीं था और उसके सभी सदस्य अंग्रेज होने से भारत की प्रजा ने प्रबल विरोध किया । कमीशन ज्यों ही मुंबई में गेट वे ऑफ इंडिया के पास उतरा त्यों ही ‘साइमन गो बैक’ के नारे से उनका स्वागत किया गया । उसके बाद वे जिन- जिन शहरों में राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलने गये वहाँ भी उनका प्रबल विरोध हुआ
कमीशन में भारतीयों को सदस्य के रूप में न लेने का ब्रिटिश सरकार के निर्णय का अर्थ ही यह था कि सरकार को हिन्दुस्तान के लिए संवैधानिक सुधार देने में कोई भी रुचि नहीं थी ।इंग्लैंड के ‘हाउस ऑफ कॉमन’ के भारतीय सदस्यों में से भी इस कमीशन में किसी एक-दो सदस्य का भी समावेश किया गया होता, तो अच्छा लगता, परंतु ब्रिटिश सरकार ने इस माँग को ठुकरा दिया, इससे भारत की प्रजा का रोष भड़क उठा । तत्कालीन भारतीय मंत्री (सचिव) बर्कनहेड ने तो भारतीयों का अपमान भी किया। उसके शब्द थे, “भारत के लोग न तो संवैधानिक विषयों पर विचार-विमर्श करने की स्थिति में हैं और न तो संवैधानिक रूप-रेखा का स्वरूप देने की ही स्थिति में हैं, जो भारत के सभी वर्गों, सभी कौमों को मान्य हो” उसके इस विधान को भारत के नेताओं ने चुनौती समझकर स्वीकार किया ।
काँग्रेस, जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग, भारतीय महासभा आदि राजनीतिक दलों ने साइमन का विरोध किया और उसे सहयोग देने से इन्कार किया । फिर भी पंजाब यूनियनिस्ट, मद्रास प्रांत की जस्टिस पार्टी और मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद शफी ने साइमन कमीशन को सहयोग देने का निश्चय किया;जबकि उनके इस व्यवहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
3 फरवरी, 1928 को मुंबई में साइमन कमीशन के आगमन के विरोध में समग्र भारत में हड़ताल हुई । दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन को कुचल डालने के लिए दमन नीति का आश्रय लिया। हजारों निर्दोष और निःशस्त्र लोगों को पुलिस ने मारा-पीटा। पुलिस ने गोविंद वल्लभ पंत… लाला लजपत राय और पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को भी न छोड़ा । निर्दयतापूर्ण मारे जाने सेंप्लॉला लजपत राय का लाहौर में 17 नवम्बर 1928 को अवसान हुआ।
पंतजी तो जीवन पर्यंत विकलांग हो गये । लालाजी को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गाँधीजी ने कहा, “जब तक आकाश में सूर्य चमकता रहेगा तब तक लालाजी जैसे व्यक्ति की कभी मृत्यु नहीं हो सकती।” सरकार की कठोर दमन नीति होने पर भी भारतीय जनता का मनोबलन ही टूटा उलटे ऐसी घटनाओं ने ही स्वतंत्रता संग्राम को एक नूतन दिशा दी । उदा. स्वरूप- सरदार वीर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु आदि क्रांतिकारियों ने तो लालाजी की मृत्यु का बदला लेने का निश्चय किया। अंग्रेज अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या की; क्योंकि बीमार लालाजी पर लाठीचार्ज करने के लिए वह उत्तरदायी था
वीर भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली के सेंट्रल एसेम्बली हॉल में दो बम फेंका
वीर भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली के सेंट्रल एसेम्बली हॉल में दो बम फेंककर समग्र देश में जबरदस्त उत्तेजना फैला दी। बम फेंकने के बाद वे दोनों वहाँ से भागे नहींः क्योंकि वे सरकार को उस सच्चाई से अवगत कराना चाहते थे कि भारतीय युवक उन्हें सुख-चैन से बैठने नहीं देंगे । उन्होंने सामने से आकर गिरफ्तारी स्वीकार की ।
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