पंजाब के अमृतसर में स्थित यह मंदिर दुनियाभर के प्रसिद्द मंदिरो में से एक है। यह अमृतसर (पंजाब) में स्थित सिक्खों का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण ही इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं। दुनिया भर के सिक्ख अमृतसर आना चाहते हैं और श्री हरमंदिर साहिब में अपनी अरदास देकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करना चाहते हैं। आइये जानते स्वर्ण मंदिर का इतिहास क्या है?
स्वर्ण मंदिर का इतिहास – History of Golden Temple
सन 1589 ने गुरु अर्जुन देव के एक शिष्य शेखमियां मीर ने सरोवर के बीच में स्थित वर्तमान स्वर्ण मन्दिर की नींव डाली। मन्दिर के चारों ओर चार दरवाज़ों का प्रबन्ध किया गया था। यह गुरु नानक के उदार धार्मिक विचारों का प्रतीक समझा गया। मन्दिर में गुरु ग्रंथ साहिब की, जिसका संग्रह गुरु अर्जुन देव ने किया था, स्थापना की गई थी। सरोवर को गहरा करवाने और परिवर्धित करने का कार्य बाबू बूढ़ा नामक व्यक्ति को सौंपा गया था और इन्हें ही ग्रंथ साहब का प्रथम ग्रंथी बनाया गया।
1757 ई. में वीर सरदार बाबा दीपसिंह जी ने मुसलमानों के अधिकार से इस मन्दिर को छुड़ाया, किन्तु वे उनके साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने अपने अधकटे सिर को सम्भालते हुए अनेक शत्रुओं को मौत के घाट उतारा। उनकी दुधारी तलवार मन्दिर के संग्रहालय में सुरक्षित है। स्वर्ण-मन्दिर के निकट बाबा अटलराय का गुरुद्वारा है।
ये छठे गुरु हरगोविन्द के पुत्र थे, और नौ वर्ष की आयु में ही सन्त समझे जाने लगे थे। उन्होंने इतनी छोटी-सी उम्र में एक मृत शिष्य को जीवन दान देने में अपने प्राण दे दिए थे। कहा जाता है, कि गुरुद्वारे की नौं मन्ज़िलें इस बालक की आयु की प्रतीक हैं। पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह ने स्वर्ण-मन्दिर को एक बहुमूल्य पटमण्डप दान में दिया था, जो संग्रहालय में है।
स्वर्ण मंदिर की स्थापना – Information About Golden Temple
गुरु अर्जुन साहिब, पांचवें नानक, ने सिक्खों की पूजा के एक केन्द्रीय स्थल के सृजन की कल्पना की और उन्होंने स्वयं श्री हरमंदिर साहिब की वास्तुकला की संरचना की पहले इसमें एक पवित्र तालाब ( अमृतसर या अमृत सरोवर) बनाने की योजना गुरु अमरदास साहिब द्वारा बनाई गई थी, जो तीसरे नानक कहे जाते हैं किन्तु गुरु रामदास साहिब ने इसे बाबा बुद्ध जी के पर्यवेक्षण में निष्पादित किया।
इस स्थल की भूमि मूल गांवों के जमींदारों से मुफ़्त या भुगतान के आधार पर पूर्व गुरु साहिबों द्वारा अर्जित की गई थी। यहाँ एक क़स्बा स्थापित करने की योजना भी बनाई गई थी। अत: सरोवर पर निर्माण कार्य के साथ कस्बों का निर्माण भी इसी के साथ 1570 ई. में शुरू हुआ। दोनों परियोजनाओं का कार्य 1577 ई. में पूरा हुआ था।
स्वर्ण मंदिर का वास्तुकला – Architecture of Golden Temple
स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य सितंबर 1604 में पूरा हुआ। में गुरु अर्जन साहिब ने नव सृजित गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख धर्म की पवित्र पुस्तक) की स्थापना श्री हरमंदिर साहिब में की तथा बाबा बुद्ध जी को इसका प्रथम ग्रंथी अर्थात गुरु ग्रंथ साहिब का वाचक नियुक्त किया। इस कार्यक्रम के बाद ‘अथ सत तीरथ’ का दर्जा देकर यह सिक्ख धर्म का एक अपना तीर्थ बन गया।
श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण सरोवर के मध्य में 67 वर्ग फीट के मंच पर किया गया है। यह मंदिर अपने आप में 40.5 वर्ग फीट है । उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में इसके दरवाज़े हैं। दर्शनी ड्योढ़ी (एक आर्च) इसके रास्ते के सिरे पर बनी हुई है। इस आर्च के दरवाज़े का फ्रेम लगभग 10 फीट ऊंचा और 8 फीट 4 इंच चौड़ा है। इसके दरवाज़ों पर कलात्मक शैली सजावट की गई है। यह एक रास्ते पर खुलता है जो श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य भवन तक जाता है। यह 202 फीट लंबा और 21 फीट चौड़ा है। इसका छोटा सा पुल 13 फीट चौड़े प्रदक्षिणा (गोलाकार मार्ग या परिक्रमा) से जोड़ा है।
यह मुख्य मंदिर के चारों ओर घूमते हुए “हर की पौड़ी” तक जाता है। “हर की पौड़ी” के प्रथम तल पर गुरु ग्रंथ तक जाता है। साहिब की सूक्तियां पढ़ी जा सकती हैं। इसके सबसे ऊपर एक गुम्बद अर्थात एक गोलाकार संरचना है जिस पर कमल की पत्तियों का आकार इसके आधार से जाकर ऊपर की ओर उल्टे कमल की तरह दिखाई देता है, जो अंत में सुंदर “छतरी” वाले एक “कलश” को समर्थन देता है।
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