चर्चा तथाकथित खालिस्तान पर – Khalistan

चर्चा तथाकथित खालिस्तान पर

नमस्कार मित्रो, काफी दिनो से आपके कानो में एक शब्द काफी सुनाई दे रहा होगा जो है खालिस्तान , आइये आज इस तथाकथित मुद्दे के उपर कुछ जान लें
तो सबसे पहले जानते है की ये शब्द बना कैसे, यह शब्द दो शब्दों को मिलकर बनता है खालसा और स्थान, जिसका पूर्ण अर्थ है खालसाओं का स्थान।

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खालिस्तान की शुरुआत कैसे हुई

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खालसा पंथ की शुरुआत १६९९ में सिक्खो के दसवे  व अंतिम गुरु , श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी, इस पंथ का सिद्धांत था हिन्दुओ की रक्षा करना , इससे यह भी ज्ञात होता है की सिख और हिन्दू दो अलग धर्म नहीं अपितु एक ही धर्म सनातन के केवल दो अलग पंथ है, परन्तु बढ़ते समय के साथ दोनों पंथो में मतभेद बढ़ते गए। चलिए जानते है की इस मतभेद का कारण क्या था, और इसे जानने के लिए हमें जाना होगा १९७० के दशक में जब भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी और इसे १९७८ में हटाया गया तब तक कांग्रेस पार्टी के खिलाफ कई लोग जा चुके थे. इसी कारणवश पंजाब के तब के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हो चुकी थी। देश में भी इंदिरा गाँधी की मशहूरता कम हो गयी थी ऊपर से वे उस समय के लोकसभा चुनावो को हार चुकी थी.

 

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किन लोगो का है ये खालसा

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भारत में पंजाब भूमि की एक अलग ही महत्वता है। इसी वजह से कांग्रेस पार्टी, वहां फिर से अपनी सर्कार बनाना चाहती थी. खबरों की माने तो कांग्रेस, पंजाब में किसी ऐसे चेहरे को लाना चाहती थी जो काम तो उसके लिए करे लेकिन लोगो को यह प्रतीत हो जैसे कांग्रेस उस दुराचारी व्यक्ति का खात्मा कर रही है। और यह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि उस समय के कुख्यात आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरांवाले था, जिसे पंजाब के ज्यादातर लोग संत भी मानते है. यह वही भिंडरावाले है जिसने ोपंजाब में खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की, और इसी आंदोलन के नाम पर काफी नरसंहार भी किया, हलाकि उसने कभी भी खुलेतौर पर अलग खालिस्तान राष्ट्र की मांग नहीं की. भिंडरांवाले का जन्म पंजाब के मोगा नामक स्थान पर हुआ था आगे चलकर ये प्रसिद्ध सिख संसथान दमदमी टकसाल का चौदहवा जथेदार बनता है. इसकी प्रसिद्धिं १९७८ में हुए सिख निरअंकरी हिंसा में और बढ़ गयी जब ये और इसके लोगो ने कई निरंकारी लोगो की निर्मम हत्या कर दी. आपको यहाँ पर बताते हुए चले की भिंडरांवाले की खुद की एक हथियारबंद फौज थी.

 

कौन थे भिंडरवाले

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साल १९८२ में भिंडरावाले और उसके लोगो ने मिलकर अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में अपना डेरा डाला और उसे ही अपना मुख्यालय बना लिया। इसी वर्ष उसने अकाली दल के साथ मिलकर धर्म युद्ध मोर्चा की भी शुरुआत की. इनका मकसद था पंजाब देश की बड़ी भूमि बन जाय जिसमे हरयाणा और हिमाचल जैसे राज्य शामिल हों. वर्ष १९८३ में भिंडरावाले और उसके अनुयायियों ने प्रसिद्ध सिख मंदिर अकाल तख़्त को अपने कब्जे में ले लिया। जरनैल सिंह भिंडरावाले की मृत्यु वर्ष १९८४ में उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा चलाये गए ऑपरेशन में हुई थी जिसका नाम था ऑपरेशन ब्लू स्टार। स्वतंत्र भारत में लगभग ये पहला मौका था जब देश की फौज ने सीमा के अंदर युद्ध किया था. इस ऑपरेशन के तहत स्वर्ण मंदिर के हरमिंदर साहिब में छिपे भिंडरांवाले और उसके कई अनुयायियों को मार दिया गया था. आगे चलकर यही एक मुख्या वजह भी बनती है इंदिरा गाँधी मृत्यु की। तब से लेकर अगले १० वर्षो तक पंजाब में कुछ इसी तरह के माहौल रहे.

 

 

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वर्ष २०१९ से एक बार फिर यह मुद्दा काफी जोरो से पंजाब में उठे जा रहा है. कुछ दिनों पहले ही एक घटना क्रम में जब पंजाब पुलिस ने वहां के कुख्यात नेता लाभप्रीत सिंह को गिरफ्त में लिया तब उसे जेल से निकलने उसका साथी अमृतपाल सिंह अपनी पूरी फ़ौज लेकर पुलिस ठाणे पहुंच जाता है और कई तस्वीरों में उसे स्तानीय एसएसपी को धमकाते हुए भी देखा जा सकता है. इसी घटना के बाद से अमृतपाल सिंह एक नए राष्ट्र खालिस्तान की मांग खुले तोर पर कर रहा है। यह , भिंडरावाले को अपना आदर्श मानता है और पंजाब के प्रसिद्ध गायक डीप सिद्धू के मृत्यु के बाद से ही उनकी बनायीं पार्टी “वारिस पंजाब दे” का प्रमुख है. जिस तरह से ८० के दशक में भिंडरांवाले की हथियारबंद फ़ौज थी ठीक उसी प्रकार से अमृतपाल सिंघ्ब की भी आज है जिसका नाम है “आनंदपुर खालसा फाॅर्स”, जिसमे हजारो लोग बन्दुक पिस्तौल राइफल भला और तलवारो के साथ मौजूद है. परन्तु ऐसी देशविरोधी ताकतों से भारत समय समय पर लड़ता और विजय पाता रहा है. अपना समय इस पोस्ट को देने के लिए धन्यवाद्।

BY Chandresh Mishra

 

 

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