साइमन कमिशन – Simon Commision
साइमन आयोग सात ब्रिटिश सांसदो का समूह था, जिसका गठन 8 नवम्बर 1927 में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिये किया गया था और इसका मुख्य कार्य ये था कि मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार कि जांच करना था। 3 फरवरी 1928 में साइमन कमीशन भारत आया। भारतीय आंदोलनकारियों में ‛‛साइमन कमीशन वापस जाओ’’ के नारे लगाए और जमकर विरोध किया। साइमन कमीशन के विरुद्ध होने वाले इस आंदोलन में कांग्रेस के साथ साथ मुस्लिम लीग ने भी भाग लिया। साइमन आयोग (कमीशन) नाम इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर रखा गया था । साइमन आयोग के मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे :-
भारत में एक संघ की स्थापना हो जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासतें शामिल हों।
केन्द्र में उत्तरदायी शासन की व्यवस्था हो।
वायसराय और प्रांतीय गवर्नर को विशेष शक्तियाँ दी जाएं।
एक लचीले संविधान का निर्माण हो।
साइमन कमिशन – Simon Commision
साइमन कमीशन के सुझाव
साइमन कमीशन की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि-
– (प्रांतीय क्षेत्र में विधि तथा व्यवस्था सहित सभी क्षेत्रों में उत्तरदायी सरकार गठित की जाए।
– केन्द्र में उत्तरदायी सरकार के गठन का अभी समय नहीं आया।
– केंद्रीय विधान मण्डल को पुनर्गठित किया जाय जिसमें एक इकाई की भावना को छोड़कर संघीय भावना का पालन किया जाय। साथ ही इसके सदस्य परोक्ष पद्धति से प्रांतीय विधान मण्डलों द्वारा चुने जाएं।
विरोध और लाला लाजपत राय की मृत्यु
कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे जो भारतीयों का बहुत बड़ा अपमान था। चौरी चौरा की घटना के बाद असहयोग आन्दोलन वापस लिए जाने के बाद आजा़दी की लड़ाई में जो ठहराव आ गया था वह अब साइमन कमीशन के गठन की घोषणा से टूट गया। 1927 में मद्रास में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें सर्वसम्मति से साइमन कमीशन के बहिष्कार का फैसला लिया गया जिसमें गांधी , नेहरु सभी ने इसका विरोध करनेका निर्णय लिया । मुस्लिम लीग ने भी साइमन के बहिष्कार का फैसला किया।
3 फरवरी 1928 को कमीशन भारत पहुंचा। साइमन कोलकाता लाहौर लखनऊ, विजयवाड़ा और पुणे सहित जहाँ जहाँ भी पहुंचा उसे जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा और लोगों ने उसे काले झंडे दिखाए। पूरे देश में साइमन गो बैक (साइमन वापस जाओ) के नारे गूंजने लगे। लखनऊ में हुए लाठीचार्ज में पंडित जवाहर लाल नेहरू घायल हो गए और गोविंद वल्लभ पंत अपंग। 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। पुलिस ने लाला लाजपत राय की छाती पर निर्ममता से लाठियां बरसाईं। वह बुरी तरह घायल हो गए और मरने से पहले उन्होंने बोला था कि “आज मेरे उपर बरसी हर एक लाठी कि चोट अंग्रेजोंं की ताबूत की कील बनेगी” अंतत: इस कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई।
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