भारत में जगहों से संबधित कई रहस्य देखने को मिलते है। कुछ न कुछ रहस्य से भरी जानकारी सुनने को मिलती है। ऐसे ही आज हम एक रहस्य से भरी जगह बताने जा रहे है जिसका नाम है भीमकुण्ड। आप में से कई लोगो ने भीम कुंड के बारे में सुना होगा। यह मध्यप्रदेश के छतरपुर के यहां स्थित है। आइये जानते इसका क्या रहस्य है?
भीमकुण्ड का रहस्य क्या है – The Secret of Bhimkund
भीमकुण्ड एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जो मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल में जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर सागर छतरपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। यह जल कुण्ड एक गुफ़ा में स्थित है। वर्तमान समय में यह धार्मिक पर्यटन एवं वैज्ञानिक शोध का केन्द्र भी बनता जा रहा है। अनेक शोधकर्ता इस जल कुण्ड में कई बार गोताखोरी आदि करवा चुके हैं, किन्तु इस जल कुण्ड की थाह अभी तक कोई भी नहीं पा सका है।
जल कुण्ड के ठीक ऊपर वर्तुलाकार बड़ा-सा कटाव है, जिससे सूर्य की किरणें कुण्ड की जलराशि पर पड़ती हैं। सूर्य की किरणों इस जलराशि में मोरपंख के रंगों की आभा झलकती है। यह कहा जाता है कि इस कुण्ड में डूबने वाले का मृत शरीर कभी ऊपर नहीं आता। कुण्ड में डूबने वाला व्यक्ति सदा के लिए अदृश्य हो जाता है ।
भीमकुंड से जुडी पौराणिक कथाये-
पौराणिक ग्रंथों में भीमकुण्ड का ‘नारदकुण्ड’ तथा ‘नीलकुण्ड’ के नाम से भी उल्लेख मिलता है भीमकुण्ड के संबंध में कई कथाएँ प्रचलित हैं।
1.भीम द्वारा गदा प्रहार द्वारा जल के स्रोत प्रकट करना –
एक प्रसिद्ध कथानुसार महाभारत काल में द्यूतक्रीड़ा में कौरवों से पराजित होने के बाद पांडव अज्ञातवास के लिए निकल पड़े। एक सघन वन से गुजरते समय द्रौपदी को बड़ी जोर की प्यास लगी। पांचों भाइयों ने आस-पास पानी ढूँढा, किन्तु वहाँ पानी का कोई स्रोत नहीं था।
द्रौपदी भी अपनी प्यास पर नियंत्रण रखने का प्रयास करती आगे बढ़ी। किन्तु कुछ दूर जाने पर द्रौपदी का प्यास के मारे बुरा हाल हो गया। वह मूर्छित होकर गिर पड़ीं। पांडवों ने पुनः पानी तलाशा। वहाँ आस-पास पानी की एक बूँद भी नहीं थी। उन्हें ऐसा लगा कि यदि द्रौपदी को अविलम्ब पानी नहीं मिला तो उसके प्राण पखेरू उड़ जाएँगे।
युधिष्ठिर की सलाह-
इस विकट स्थिति में स्वयं को हरसंभव प्रयत्न से शांत रखते हुए धर्मराज युधिष्ठिर ने नकुल को स्मरण कराया कि उसके पास यह क्षमता है कि वह पाताल की गहराई में स्थित जल का भी पता लगा सकता है। युधिष्ठिर का कथन स्वीकार करते हुए नकुल ने भूमि को स्पर्श करते हुए ध्यान लगाया। नकुल को पता चल गया कि किस स्थान पर जल स्रोत है। अब समस्या यह थी कि भूमि को भेद कर किस प्रकार जल प्राप्त किया जाये।
भीम का गदा प्रहार-
भीम द्रौपदी की दशा देखकर पहले ही क्रोध से व्याकुल हो रहे थे, जब उन्होंने देखा कि जल स्रोत का पता चलने पर भी जल के दर्शन नहीं हो पा रहे हैं तो उन्होंने क्रोधित होकर अपनी गदा उठाई और नियत स्थान पर गदा से प्रहार किया। भीम की गदा के प्रहार से भूमि की कई परतों में छेद हो गया और जल दिखाई देने लगा। किन्तु भूमि की सतह जल स्रोत लगभग तीस फिट नीचे था। न तो वहाँ तक मूर्च्छित द्रौपदी को ले जाया जा सकता था और न ही जल को द्रौपदी तक लाया जा सकता था।
ऐसी स्थिति में युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा अब तुम्हें अपनी धनुर्विद्या के कौशल से जल तक पहुँच मार्ग बनाना होगा। यह सुनकर अर्जुन ने धनुष पर बाण चढ़ाया और अपने बाणों से जल स्रोत तक सीढियाँ बना दीं। धनुष की सीढियों से द्रौपदी को जल स्रोत तक ले जाया गया। चूँकि भीम की गदा के प्रहार से भूमि में जो कुण्ड बना, वही कुण्ड ‘भीमकुण्ड’ कहलाया। इस स्थान पर द्रौपदी सहित पाण्डवों ने कुछ समय व्यतीत किया था।
2. देवर्षि नारद द्वारा सामगान का गायन –
कथा के अनुसार एक बार नारद आकाश मार्ग से विचरण कर रहे थे। रास्ते में उन्हें अनेक विकलांग स्त्री-पुरुष दिखाई पड़े। वे स्त्री-पुरुष न केवल विकलांग थे, अपितु घायल भी थे तथा कराह रहे थे। यह दृश्य देख कर देवर्षि नारद दुःखी हो गए।
वे उन स्त्री-पुरुषों के पास पहुँचे और उन्होंने उनसे उनका परिचय पूछा। उन स्त्री-पुरुषों ने बताया कि वे संगीत की राग-रागिनियाँ हैं। यह सुनकर नारद को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने राग-रागिनियों से पूछा कि तुम लोगों की ये दशा कैसे हुई ? बताओ, तुम्हारे दुःख-कष्ट को दूर करने के लिए मैं क्या कर सकता हूँ? नारद के पूछने पर राग-रागिनियों ने बताया कि पृथ्वी पर स्थित अनाड़ी गायक-गायिकाओं द्वारा दोषपूर्ण गायन के कारण हमारे अस्तित्व को क्षति पहुँची है।
अब तो हमारा उद्धार तभी हो सकता है, जब संगीत विद्या में निपुण कोई कुशल गायक सामगान का गायन करे। नारद सामगान के ज्ञाता थे। राग-रागिनियों की बात सुनकर वे स्वयं को रोक नहीं सके और उन्होंने सामगान का गायन प्रारम्भ कर दिया।
देवर्षि नारद का स्वर तीनों लोकों में व्याप्त होने लगा। देवता सामगान के स्वरों में मग्न होने लगे। भगवान शिव नर्तन कर उठे तथा भगवान ब्रह्मा ताल देने लगे। सामगान के स्वरों को सुनकर तथा इस अलौकिक दृश्य को देखकर भगवान विष्णु इतने भाव-विभोर हो उठे कि वे द्रवीभूत होकर उसी स्थान पर जा पहुँचे, जहाँ पीड़ित राग-रागिनियाँ एक थीं।
द्रवीभूत विष्णु का स्पर्श पाकर राग-रागिनियाँ स्वस्थ हो गईं। उन्होंने भगवान विष्णु से निवेदन किया कि वे द्रवीभूत रूप में सदा के लिए उसी स्थान में रुक जाएँ, जिससे अन्य पीड़ितों का भी उद्धार हो सके। भगवान विष्णु ने राग-रागिनियों की प्रार्थना स्वीकार कर ली और नल-जल के रूप में वहीं एक कुण्ड में ठहर गए।
यही कुण्ड ‘नारदकुण्ड’, ‘नीलकुण्ड’ तथा ‘भीमकुण्ड’ के नामों से पुकारा जाता है। इस कुण्ड का वर्षा ऋतु का जल जलधर बादलों की भांति नीले रंग का दिखाई पड़ता है।
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