भारत में सांस्कृतिक विरासत अमूल्य है। जिसमें कला, स्थापत्य की विरासत अविस्मरणीय है। आर्यों से लेकर अंग्रेजों ने स्थापत्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत के प्राचीन स्मारकों का महत्व अनेक गुना बढ़ जाता है। कारण कि कुल पांच हजार स्मारकों में से 17 स्मारकों को संयुक्त राष्ट्र की बिन राजनीतिक यूनेस्को ने विश्व विरासत के स्मारकों की सूची में शामिल किया है। ऐसी विशिष्ट पहचान रखने वाले स्मारकों का अब हम विस्तृत अभ्यास करेंगे।
भारत के सांस्कृतिक विरासत के 6 स्थल – 6 Sites of Cultural Heritage of India
अजंता की गुफा
ये गुफायें महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में आई हुई हैं। अजंता में इन गुफाओं की कुल संख्या 30 थी। कहते हैं कि दो हजार वर्ष पहले मानसिक शांति की खोज में निकले हुए बौद्ध साधुओं ने इन गुफाओं में आश्रय लेकर कला सर्जन किया था ।
अंजता की गुफाओं में गुफा नं. 9, 10, 19, 26 और 29 चैत्य है। जबकि बाकी गुफाएँ विहार है। चौमासा पूरा होते ही इन गुफाओं को देखने जाया जाय तो इनके प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद लिया जा सकता है।
ईलोरा की गुफाएँ
इलोरा एक पुरातात्विक स्थल है, जो भारत में औरंगाबाद महाराष्ट्र में 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इन्हें राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा बनाया गया था। अपनी स्मारक गुफा के लिए प्रसिद्ध एलोरा यूनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व धरोहर स्थल है।
जिसमें कुल 34 गुफाएँ हैं। इन गुफा मंदिरों की संख्या 1 से 12 बौद्ध और 13 से 29 हिन्दू धर्म की है। उसके पश्चात राष्ट्रकूट वंश के समय में जैन गुफाओं नं. 30 से 34 का निर्माण हुआ था। उसमें बौद्ध, जैन तथा हिंदुओं के सांस्कृतिक युग को प्रदर्शित करते हुए स्तंभ मूर्तिया हैं। वहाँ का विशेष आकर्षण कैलास मंदिर आया हुआ है जो 50 मीटर लंबा. 33 मीटर ऊँचा है । इस मंदिर को एक ही पत्थर में नक्काशी करके बनाया है। सारांश में यह मंदिर अनेक सुंदर मूर्तिओं से सुसज्ज भारतीय सभ्यता का जीवन्त प्रदर्शन कराता है।
एलिफेंटा की गुफाए
एलिफेंटा द्वीप महाराष्ट्र के मुंबई शहर में स्थित गेटवे ऑफ इंडिया से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एलिफेंटा को घारापुरी के नाम से भी जाना जाता है जो कोंकणी मौर्य की द्वीपीय राजधानी थी। एलिफेंटा नाम पुर्तगालियों द्वारा यहां पर बने पत्थर के हाथी के कारण दिया गया था। यहां अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। पहाड़ियों को काटकर बनाई गई ये मूर्तियां दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित हैं।
एलिफेंटा में कुल सात गुफाएं हैं। यहां मौजूद मुख्य गुफा में कुल 26 स्तंभ हैं, जिसमें भगवान शिव को कई रूपों में उकेरा गया है। इनमें उनकी त्रिमूर्ति प्रतिमा सबसे आकर्षक है, जिसमें उनके तीन रूपों का चित्रण किया गया है।
एलीफेंटा की गुफाओं को साल 1980 के दशक की शुरुआत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था। वहां एक बौद्ध स्तूप भी बनाया गया है।
महाबलीपुरम
महाबलीपुरम दक्षिण भारत के पल्लव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के उपनाम “महामल्ल” पर से महामल्लपुरम नाम से पहचाना हुआ यह स्थल चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर है वर्तमान समय में यह महाबलीपुरम के नाम से जाना जाता है। इस शहर को सात पैगोडा का शहर भी कहते हैं। अभी केवल 5 खंडक मंदिर (Rock Cut Temple) ही अस्तित्व में है। दो खंडक मंदिर समुद्र में विलीन हो गए हैं। इस आकार के इन मंदिरों को पांडवों का नाम दिया गया है। पल्लव वंश के राजाओं ने जैसे की खड़क कला के नमूने रूप मंदिरों का श्रेष्ठ संग्रह स्थल बनाया है। आसपास की चट्टानों में से नकाशी किए गए अन्य मंदिर भी है। इनमें हास्य मुद्रा स्वरूप में विष्णु की मूर्ति यह मूर्तिकला का अद्भुत नमूना है। इसके उपरांत महिषासुर का वध करते हुए दुर्गा देवी की मूर्ति देखने योग्य है। विश्व में खड़क शिल्प के बेमिसाल स्थापत्यो को रखने वाला महाबलीपुरम प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध बंदरगाह भी था।
क़ुतुब मीनार
भारत के महत्वपूर्ण स्मारकों में से कुतुबमीनार एक महत्वपूर्ण स्मारक है। 72.5 मीटर ऊँची इस गगनचुंबी इमारत की रचना में गोल, लाल पत्थर एवं संगमरमर का खुल के उपयोग किया गया है। जमीन पर घेराव 13.75 मीटर है जो ऊँचाई बढ़ने पर 2.75 मीटर होता है । इस भव्य इमारत के निर्माण कार्य का आरम्भ 12वीं सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा उसकी मृत्यु के पश्चात ई.स. 1210 तक सुधार करके उनके दामाद तथा उत्तराधिकारी इल्तुत्मिश द्वारा पूर्ण किया गया था। यह भारत की आज तक पत्थरों की बनी सबसे ऊँची स्तंभ मीनार है जिसका उपयोग नमाज की अजान देने के लिए किया जाता था ।
हम्पी
यह नगर कर्णाटक के बेल्लारी जिला के होसपेट तहसील में तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। 14वीं सदी में हम्पी विजयनगर के साम्राज्य की राजधानी थी। आज यह केवल विजय नगर के राजाओं की कीर्ति दर्शानेवाला भग्नावेशेषां का स्थल मात्र है। ई.स. 1336 में हरिहर और बुक्काराय ने इसकी स्थापना की थी। ई.स. 1509 से ई.स. 1529 वह कृष्णदेवराय के राज्य का स्वर्णकाल (स्वर्णयुग) माना जाता था। उसके समय में ‘स्मारकों का विकास हुआ। ई.स. 1565 में विजयनगर के अंतिम राजा रामराय को वालीकोट के युद्ध में पराजय मिली इसके पश्चात इस राजधानी का पतन हुआ। हम्पी में स्थित विठ्ठल मंदिर, हजारा मंदिर, विरुपाक्ष मंदिर, श्री कृष्ण तथा अच्युतराय के मंदिर स्थापत्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
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