Arts of Cultural Heritage of India.
भारत अपनी समृद्ध और संपन्न सांस्कृतिकता की वजह से वैश्विक स्तर पर अपनी अलग पहचान बना कर वैश्विक धरोहर को उजागर कर रहा है। अपनी प्राचीन संस्कृति में 16 विद्या और 64 कला मानी गई है। विश्व के प्राचीन संस्कृतियों में हिंदुस्तानी संस्कृति अपनी परंपराएं, सामाजिक मूल्य, रिति-रिवाज, रुढियां, कुटुंबाव्यवस्था आदि गुणों की वजह से आने वाली अनेक पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में छोड़ गई है। जिसमें ललितकला और हस्तकला ऐसा प्रमुख वर्गीकरण किया जा सकता है। आज हम इस पोस्ट में हमारी समृद्ध ललित कलाओं के बारे में जानते हैं।
भारत के सांस्कृतिक विरासत की ललित कलाएं – Arts of Cultural Heritage of India.
1.संगीत कला
हिंदुस्तानी संस्कृति की विरासत में भारतीय शास्त्रीय संगीत बड़ी भूमिका रह चुकी है स्वर, ताल, लय के साथ इन कलाओं में लोकप्रियता छिपी हुई है।स्वर, ताल और लय की दृष्टि से भारतीय संगीत विश्व में अन्य देशों के संगीत से अलग है। संगीत में गायन और वादन का समावेश होता है। संगीत को मुख्यतः शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत में बांट सकते हैं।
हमारे संगीत में मुख्यतः पाँच राग हैं जैसे कि :
(all) श्री
(2) दीपक
(3) हींडोल
4) मेघ
(5) भैरवी
ये सब भगवान शंकर के पंचमुख से उत्पन्न हुए हैं ऐसा माना जाता है। भारतीय संगीत के विकास की गति दर्शाने वाला आर्यों का ‘सामवेद’ नामक ग्रंथ संगीत की गंगोत्री है।
2.नृत्य कला
मूल संस्कृत शब्द ‘नृत्य’ से नृत्य, शब्द उदभवित हुआ है। ताल और लय के साथ सौंदर्य की अनुभूति कराने का साधन नृत्य है। नृत्य के देवाधिदेव महादेव नटराज माने जाते हैं। पृथ्वी के लोगों को नृत्य सिखाने के लिए नृत्य को स्वर्ग से नीचे लानेवाले वे प्रथम थे। भारत के शास्त्रीय नृत्य के प्रकारों में भरतनाटयम्, कुचीपुडी, कथकली, कथ्थक, ओडिसी और मणिपुरी मुख्य हैं ।
3.भरतनाटयम्
तमिलनाडु का तांजोर जिला ‘भरतनाटयम्’ नृत्यशैली का उद्भव स्थान माना जाता है। भरतमुनि रचित नाटयशास्त्र और नंदीकेश्वर रचित अभिनव दर्पण ये दोनों ग्रन्थ भरतनाटयम् के आधारस्तंभ हैं। मृणालिनी नाराभाई, गोपीकृष्ण, बीरजू महाराज वैजयंतिमाला और हेमामालिनी आदि ने प्राचीन भारत की इस विरासत को आज भी जीवित रखा है।
4.कुचीपुड़ी नृत्य
कुचीपुड़ी नृत्य आंध्र प्रदेश में प्रचलित है। जो कि भरतनाटयम् से मिलते जुलते नृत्य का एक प्रकार है। गुरुप्रहलाद शर्मा राजा रेड्डी, शोभा नायडु आदि प्रख्यात नर्तकों ने इस प्राचीन विरासत को आज भी जीवित रखा है।
5.कथकली
कथकली शब्द कथा के साथ जुड़ा हुआ है। रंगबिरंगी वेशभूषा तथा प्रभावपूर्ण प्रस्तुती के लिये कथकली शैली प्रसिद्ध है। कथकली का मूल धाम केरल हैं । इस नृत्य के पात्र सुंदर घेरदार कपड़े पहनते है,वे बड़ा कलात्मक मुकुट भी धारण करते है।इसकी कथावस्तु में मुख्यतः जटायुवध, राम रावण युद्ध, नल दमयंती आदि की कथा देखने को मिलती है।
6.कथक नृत्य
कथक भरत नाट्यम की तरह केरली लोकनृत्य का प्रकार है। कथक के नाम में कथा रही हुई है ‘कथन करे सो कथक कहावे’ यह उक्ति कथक नृत्य के विकास के साथ जुड़ी हुई है।
कथक नृत्य का विकास श्री कृष्ण के जीवन के प्रसंगों पर आधारित है। वैष्णव सम्प्रदाय की श्रृंगार भक्ति के साथ उसका विकास देखने को मिलता है। कथकनृत्य के पुनुरद्धार का यश अबध के नवाब वाजिद अली शाह को मिलता है।
7.मणिपुरी नृत्य
यह नृत्यशैली वेशभूषा, भाव और ताल की दृष्टि से स्वतंत्र अस्तित्व रखता है। इसमें भी कृष्णलीला महत्वपूर्ण है। इसमें उपयोग में लिये जाते घेरदार हरे रंग के घाघरे को ‘कुमान’ कहते हैं। इसमें रेशम का ब्लाउज पहन कर कमर पर पट्टा बांधते हैं।
इस मुख्य प्रकार के अलावा उड़ीसा का ओडिसी नृत्य देश विदेश में आज भी सुप्रसिद्ध है।
8.नाट्यकला
मनोरंजन के साथ संस्कार की छटा लोगों के सामने लाने वाली नाट्यकला शुरू से ही लोगों की पसंदीदा कला रह चुकी है। नाट्यकला उत्कृष्ट संहितालेखन पर आधारित होती है। अपने अभिजात अभिनय पर आधारित सादरीकरण करते कलाकार अलग-अलग प्रकार के प्रयोग कर लोगों का मनोरंजन करते हैं। इसी कला के माध्यम से देश में नाट्य लेखन अस्तित्व में आया। उस लेखन पर आधारित रंगमंच की कला लोकप्रिय होती गई। अभिनय इस प्रभावी माध्यम का उपयोग कर भारतीय सीनेसृष्टि पर आज के वक्त में दुनिया में मशहूर हुई है।
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