भारतीय शास्त्रीय संगीत कला – Indian Classical Music

Indian Classical Music

हिंदुस्तानी संस्कृति की विरासत में भारतीय शास्त्रीय संगीत की बड़ी भूमिका रह चुकी है। स्वर, ताल और लय के साथ इस कला ने लोकप्रियता छु ली है। हिंदुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत ऐसे मुख्य दो प्रकार के साथ भारतीय संगीत में कई सारे घराने भी है। यह कला गायन और वादन जैसे मुख्य अंगो में विस्तारित होती रहती है। सा, रे, ग, म, प, ध, नि… इस सात स्वरों के साथ रागों का निर्माण होता है। श्री, दीपक, हिंडोल, मेघ और भैरवी जैसे मुख्य पांच रागों में स्वर साज चढ़ता रहता है। जिसे तबला, हारमोनियम, शहनाई, बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्यों का साथ भी मिलता है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत कला – Indian Classical Music

भारतीय शास्त्रीय संगीत कला - Indian Classical Music
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भारतीय शास्त्रीय संगीत समय के साथ विकसित हुआ है। यह आर्यों के सामगान के साथ शुरू हुआ, फिर फारसी और दक्षिणी संस्कृतियों से प्रभावित हुआ- इस तरह संगीत को दो क्षेत्रों में विभाजित किया गया: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और कर्नाटिक संगीत।

ये दो शैलियाँ भारत की क्लासिक लोक संगीत शैली बन गईं, जिन्होंने भारत में जड़ें जमाने वाली अन्य सभी संगीत शैलियों का आधार बनाया। भारतीय शास्त्रीय संगीत में संगीत के सभी वैज्ञानिक, दार्शनिक और सौंदर्य संबंधी पहलुओं का जवाब है और इसलिए यह अपने आप में एक स्वतंत्र कला है। भारतीय शास्त्रीय संगीत को समझना मतलब भारतीय संस्कृति की जड़ों को समझना है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की सराहना इस प्रकार भारत के पारंपरिक दर्शन को अपना रही है।

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कला मानवीय भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है, जो हमें विरासत के रूप में अपने पूर्वजों से प्राप्त हुई है। भारत आदिकाल से ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता एवं परंपराओं के कारण विश्व पटल पर विशेष पहचान बनाए हुए है। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भारत में विविध धर्म, भाषाएं, बोलियां, रीति-रिवाज़ तथा भौगोलिक विभिन्नताएं हैं, बावजूद इसके भी एक अखंड राष्ट्र के रूप में अडिग खड़ा है। संगीत पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। प्रसन्नता की स्थिति में मानव ने अपने मनोभावों को प्रदर्शित करने के लिए हू हू हा हा इत्यादि आवाज़ों के साथ-साथ अपने हाथ-पैर हिलाना तथा उछलना-कूदना शुरू किया। धीरे-धीरे उसने हाथ से ताली देना तथा लकड़ी की डंडियों से किसी धातु या पत्थर को बजाना शुरू किया। यहीं से मानव ने संगीत की तरफ पहला क़दम बढ़ाया। परवर्ती काल में मानव ने डमरू, शंख, भूमि दुंदुभी, मृदंग, भेरी इत्यादि वाद्यों का निर्माण किया।

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सामवेद संगीत को समर्पित वेद है। यजुर्वेद में संगीत को अनेक लोगों की आजीविका का साधन बताया गया है। वैदिक काल में संगीत के सात स्वरों का आविष्कार हो चुका था। भारतीय महाकाव्य रामायण तथा महाभारत की रचना में भी संगीत का मुख्य प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली एवं प्रकृति में अत्यधिक परिवर्तन हुआ। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि तानसेन, स्वामी हरिदास, अमीर खुसरो आदि ने संगीत की उन्नति एवं विकास के लिए अत्यधिक योगदान दिया। उन्हीं से प्रेरित होकर आमिर खां, बड़े गुलाम अली खां, पंडित रविशंकर, पंडित भीमसेन जोशी, प्रभा अत्रे, प्रवीण सुल्ताना, लता मंगेशकर आदि फनकारों ने भारतीय संगीत को वर्तमान युग में जीवित रखा। वर्तमान में शास्त्रीय तथा लोक संगीत की विभिन्न शैलियां प्रचलित हैं। शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय संगीत के अंतर्गत भारत में ख्याल, ध्रुपद, धमार, चतुरंग, तराना, ठुमरी, ग़ज़ल, भजन इत्यादि गायन शैलियां प्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त दक्षिणी प्रांत में दक्षिण भारतीय संगीत तथा पश्चिमी बंगाल में रविंद्र संगीत का प्रचलन है। कथक, भरतनाट्यम, कथकली, ओडिसी, कुचीपुड़ी, मणिपुरी तथा मोहिनीअट्टम भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में अनेक लोकगीत तथा नृत्य प्राचीन काल से ही प्रचार में हैं।

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वर्तमान में भारत में बहुत से ऐसे शहर अस्तित्व में आ चुके हैं जिनका भारतीय परंपरा एवं संस्कृति से कोई वास्ता नहीं है। भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए भारतीय संगीत का संरक्षण बहुत ज़रूरी है। विद्यालय स्तर से बच्चों को संस्कृति से जुड़े विषय पाठ्यक्रम में अनिवार्यता के साथ पढ़ाए जाने चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि देश में चल रहे कान्वेंट स्कूलों में केवल पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहां भारतीय संस्कृति के लिए कोई जगह नहीं है। वहां बाकी तो छोडि़ए, भारतीय भाषाओं में बात करने पर भी ज़ुर्माने का प्रावधान रहता है। इन विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थी क्या भारतीय संस्कृति को अपने जीवन में अपनाएंगे? बच्चे कोरे काग़ज़ की तरह होते हैं। जैसा उन्हें हम सिखाएंगे, वे वैसा ही सीखेंगे। विद्यालय स्तर पर संगीत के माध्यम से हम विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति से संबंधित गीत, देशभक्ति गीत, लोकगीत, त्योहारों से संबंधित गीत, लोक नृत्य आदि बड़ी ही सरलता से सिखा सकते हैं तथा उन्हें अपनी मातृ भाषा एवं संस्कृति से अवगत करवा सकते हैं। संगीत के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना करना अनुचित होगा। आने वाली पीढ़ी तक भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रखने हेतु विशुद्ध भारतीय संगीत का संरक्षण अति आवश्यक है। फिल्म निर्माताओं को संस्कृति पर आधारित फिल्मों का भी निर्माण करना चाहिए। पाश्चात्य की जगह भारतीय वाद्यों का संगीत के लिए अधिक प्रयोग किया जाना चाहिए।

 

 

 

 

भारत के सांस्कृतिक विरासत की ललित कलाएं – Arts of Cultural Heritage of India.

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