सांची के स्तूप की विशेषता – Specialty of Sanchi Stupa

मौर्य युग में बना सांची का स्तूप दुनिया भर में प्रसिद्ध है। जो मध्य प्रदेश जैसे छोटी सी जगह में स्थित है।इस स्तूप को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। तो क्या है इसकी विशेषता, क्या है इस जगह में खास।चलिए आज हम इस बारे में जानते हैं।

सांची का स्तूप – (Sanchi Stupa)

सांची के स्तूप की विशेषता - Specialty of Sanchi Stupa
सांची का स्तूप

मध्य प्रदेश राज्य की छोटी सी जगह सांची के बारे में आपने जरूर सुना होगा। भोपाल से 46 किलोमीटर और बेसन नगर और विदिशा से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांची रायसेन जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है। सांची के स्तूप को देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं यह दुनिया भर में मशहूर स्तूप है। किसी भी देश की ऐतिहासिक इमारत वहां के इतिहास को बयां करती है। ऐतिहासिक इमारतें ऐसी होती हैं जो दुनिया भर के लोगों को उस देश की और खींच लाती है। सांची का स्तूप भी इन्हीं इमारतों में से एक है। हालाकि ऐतिहासिक महत्व रखने के बावजूद यह स्तूप उन ऐतिहासिक इमारतों मैं शामिल नहीं है। जो ताजमहल या कुतुबमीनार की तरह पॉपुलर है मगर इस जगह से इसकी अहमियत को कम करके आंकना सही नहीं होगा क्योंकि यह स्तूप इन इमारतों से कुछ काम नहीं है। यूनेस्को ने साल 1989 से इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया है।

सांची के स्तूप की विशेषता – Specialty of Sanchi Stupa

अगर आप सड़क या रेल गाड़ी से जा रहे हैं तो आपको 5 किलोमीटर दूर से ही सांची का स्तूप नजर आएगा। जैसे जैसे आप इस विशाल शानदार स्तूप के पास पहुंचेंगे आप अलग ही अहसास से भर जाएंगे। पहाड़ की चोटी पर स्थित यह स्तूप आपको आध्यात्मिक अहसास से लबालब कर देगा। स्तूप नंबर वन यानी ग्रेट स्तूप के अलावा इस इलाके में कई और स्तूप, मठ, मंदिर बेहद प्रसिद्ध अशोक की लाट भी है। यह सभी कुछ यहां तीन ईशा पूर्व से 12वीं शताब्दी के बीच यानी 14 साल के दौरान बनाया गया है।

सांची के स्तूप की विशेषता - Specialty of Sanchi Stupa
Specialty of Sanchi Stupa

रायसेन जिले में स्थित यह एक बौद्ध स्मारक है। इस स्मारक को देखने के लिए विदेश से लाखों लोग आते हैं और सभी का मानना है कि सांची स्तूप दुनिया की बेहतरीन ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। इतिहास के पन्नों के हिसाब से यह बेहद कीमती है, तो चलिए जातने हैं इस महत्‍वपूर्ण स्तूप की पूरी कहानी।

सम्राट अशोक से जुड़ी है इसकी कहानी

सांची स्तूप का व्यास 36.5 मीटर और ऊंचाई लगभग 21.64 मीटर है। और यह सम्राट अशोक की विरासत है। क्योंकि वह बौद्ध धर्म को मान चुके थे, इसलिए सांची का स्तूप बौद्ध धर्म से जोड़कर देखा जाता है। अशोक ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में इसे बौद्ध अध्ययन और शिक्षा केंद्र के तौर पर बनवाया था।

क्यों सांची में ही बनवाया स्तूप ?

सांची के स्तूप की विशेषता - Specialty of Sanchi Stupa
Why was the stupa built in Sanchi only?

अब सवाल ये उठता है कि स्तूप सांची में ही क्यों बनवाया गया था? क्योंकि सम्राट अशोक की पत्नी भले ही विदिशा के व्यापारी की बेटी थी लेकिन उनका संबंध सांची से था इसलिए यह स्तूप सम्राट ने सांची में बनवाया था।

सांची का स्तूप खास क्यों है?

सांची के स्तूप की विशेषता - Specialty of Sanchi Stupa
Why is Sanchi Stupa special?

सांची स्तूप खास इसलिए भी है क्‍योंकि इसे देश की सबसे पुरानी शैल संरचना माना जाता है। इस संरचना को महान स्तूप या स्तूप संख्या-1 कहा जाता है। स्तूप के चारों ओर बने सुंदर तोरण द्वार पर बनी खूबसूरत कलाकृतियों को भी भारत की प्राचीन और सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक माना जाता है।सारनाथ में मिले अशोक स्तंभ जिस पर 4 से बने हुए हैं, वैसा ही अशोक स्तंभ सांची में भी मिला है इन स्तंभों का निर्माण ग्रीको बौद्ध शैली में किया गया था।

चौदहवीं सदी से लेकर साल 1818 तक, जनरल टेलर द्वारा पुनः खोजे जाने तक सांची सामान्य जन की जानकारी में नहीं था। वहीं, 1912 से 1919 के बीच में सांची स्तूप में मरम्मत का काम करवाया गया। सर जॉन मार्शल ने यह काम करवाया और इसी दौरान इस संग्रहालय का निमार्ण करवाया। जिसे बाद में साल 1986 में सांची की पहाड़ी के आधार पर नए संग्रहालय भवन में स्थानांतरित किया गया। चारों ओर से घनी झाड़ियों के बीच सांची के सारे निर्माण का पता लगाना और उनका जीर्णोद्धार कराके मूल आकार देना बेहद कठिन था, पर मार्शल ने इसे बखूबी किया।

 

 

 

 

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