Why is Delhi’s Jama Masjid Special for Muslims?
दिल्ली के ऐतिहासिक धरोहरों में शुमार जामा मस्जिद को भला कौन नहीं जानता। पुरानी दिल्ली में लाल किले के सामने वाली सड़क पर यह विशाल मस्जिद सदियों से राजधानी की शान बढ़ा रही है। आज भी यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग घूमने के लिए आते हैं। यह मस्जिद मुगल शासक शाहजहां के उत्कृष्ट वास्तुकलात्मक सौंदर्य बोध का नमूना है, जिसमें एक साथ 25000 लोग बैठ कर नमाज पढ़ सकते हैं। ऐसे में आपके लिए जामा मस्जिद के बारे में जानना भी बेहद जरूरी हो जाता है। क्या आप जानते हैं कि जामा मस्जिद का असली नाम कुछ और है? हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्या है देश की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक जामा मस्जिद का इतिहास।
दिल्ली का जामा मस्जिद मुसलमानों के लिए खास क्यों है – Why is Delhi’s Jama Masjid Special for Muslims?
दिल्ली के जामा मस्जिद को मुगल सम्राट शाहजहां ने बनवाया था। इस मस्जिद के निर्माण का काम वर्ष 1650 में शुरू हुआ था और यह 1656 में बनकर तैयार हुई थी। इस मस्जिद के बरामदे में करीब 25 हजार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं। इस मस्जिद का उद्घाटन बुखारा (वर्तमान के उज्बेकिस्तान) के इमाम सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी ने किया था।
जामा मस्जिद का निर्माण
अगर आप सोच रहे हैं कि जामा मस्जिट को किसने बनवाया, तो हम इसका जवाब यहां देने वाले है। भारत की सबसे प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक – जामा मस्जिद (Jama Masjid), 1644 और 1658 के बीच सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनाई गई थी। यह शाहजहाँ का अंतिम निर्माण है। यह मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा धार्मिक स्थल है।
दिल्ली का जामा मस्जिद का निर्माण एक ऊंची पहाड़ी पर किया गया था, जिसके कारण यह वर्तमान में आसपास के कुछ शहरों की सतह से कुछ मीटर की ऊंचाई पर चबूतरे पर स्थित है। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम से पहले जामा मस्जिद के आसपास और भी कई चीजें हुआ करती थी, लेकिन विद्रोह के कारण अंग्रेजी सरकार ने इसे नष्ट कर दिया।
जामा मस्जिद का प्रवेश द्वार लाल बलुआ पत्थर के पत्थरों से निर्मित है। मस्जिद के सबसे महत्वपूर्ण प्रवेश द्वारों में पूर्वी द्वार आता है, जिसकी ऊंचाई लगभग तीन मंजिला जितनी है। इस पूर्वी द्वार से केवल शाही लोग तथा उनके सहयोगी ही प्रवेश करते थे। जामा मस्जिद में उत्तर की तरफ एक संग्रहालय है, जिसमें पैगम्बर मोहम्मद साहब के अवशेषों को संभाल कर रखा गया है।
जामा मस्जिद के नाम का क्या मतलब है?
जामा मस्जिद का नाम अरबी भाषा के शब्द से रखा गया है। अरबी में जामा मस्जिद का मतलब Friday Mosque होता है। हम सब जानते हैं कि शुक्रवार या जुमे की नमाज का इस्लाम में बेहद ख़ास महत्व है।
ऐसे इस मस्जिद का वास्तविक नाम मस्जिद-ए-जहां नुमा (Masjid e Jahan Numa) है। इसका अर्थ है- मस्जिद जो पूरी दुनिया का नजरिया, लेकिन इसका वास्तविक नाम है – मस्जिद-ए-जहां नुमा (Masjid e Jahan Numa)। इसका अर्थ होता है – मस्जिद जो पूरी दुनिया का नजरिया।
Why is Delhi’s Jama Masjid Special for Muslims?
दिल्ली का जामा मस्जिद मुसलमानों के लिए क्यों है खास
इबादत के नजरिए से दिल्ली की जामा मस्जिद दुनियाभर के मुसलमानों के लिए ख़ास महत्व रखती है। पर्यटन के नजरिए से भी जामा मस्जिद दुनियाभर के सैलानियों को बेहद पसंद है। भारत आने वाले विदेशी सैलानी खआसकर मुसलमानों की लिस्ट में दिल्ली का जामा मस्जिद जरूर होती है।
भारत के भी अलग-अलग इलाकों से आने वाले लोग इसकी भव्यता और खूबसूरती देखकर दंग रह जाते हैं। मुगल सम्राट शाहजहां की ये आखिरी खर्चीली वास्तुकला की बानगी थी। इससे पहले शाहजहां ताजमहल और दिल्ली का लालकिला बना चुके थे। यह मस्जिद देश के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में भी शामिल है। यह कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी भी रही है।
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