आज इस आर्टिकल में हम भारत परिषद् से संबंधित जानकारी देने वाले हैं बस आप हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें । हमारे इस आर्टिकल को पढ़कर आपके मन में भारत शासन अधिनियम 1919 संबंधित जितने भी प्रश्न होंगे आपको उन सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंग।
भारत परिषद् अधिनियम 1909,भारत शासन अधिनियम 1919 – Indian Council ACT 1909, Govt of India Act 1919
1909 का भारत परिषद अधिनियम
इस अधिनियम को मार्ले-मिंटो सुधार के नाम से जाना जाता है क्योंकि तत्कालीन समय में लॉर्ड मार्ले भारत सचिव तथा लॉर्ड मिंटो भारत का वायसराय था। इस अधिनियम की विशेषताएं इस प्रकार थी-
इसमें केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में काफी वृद्धि की। केंद्रीय परिषद में इनकी संख्या 16 से 60 हो गई।
इसमें केंद्रीय परिषद में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेकिन प्रांतीय परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी।
इस अधिनियम में पहली बार वायसराय के कार्यकारी परिषद में भारतीयों को रखने का प्रावधान दिया।
इस अधिनियम में पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों को सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान दिया। इसके तहत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव में मतदाता ही कर सकता था।
यह सांप्रदायिक निर्वाचन का अधिनियम था इसलिए लॉर्ड मिंटो को संप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना जाता है।
इसने प्रेसीडेंसी कॉरपोरेशन, चेंबर ऑफ कॉमर्स, विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए
भारत शासन अधिनियम 1919 – Govt of India Act 1919
20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार ने या घोषणा की, हमारा उद्देश्य भारत में एक उत्तरदाई सरकार का स्थापना करना है। इस कानून को मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम कहा जाता है क्योंकि लॉर्ड मांटेग्यू भारत सचिव एवं लॉर्ड चेम्सफोर्ड भारत का वायसराय था। इस अधिनियम की विशेषताएं इस प्रकार है-
केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं उन्हें पृथक राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण कम किया गया। केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को अपनी सूचियों के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
इसने प्रांतीय को दो भागों में बांट दिया। एक हस्तांतरित और दूसरा आरक्षित। हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था, जो विधान परिषद के प्रति
उत्तरदायी थे।
दूसरी और आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी नहीं थी।
इस अधिनियम ने पहली बार द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की। इस प्रकार भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया।
इसके अनुसार वायसराय की कार्यकारी परिषद में 6 में से 3 भारतीयों का होना आवश्यक था।
इसलिए संप्रदायिक आधार पर सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल भारतीय और यूरोपीय के लिए पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया।
इस कानून में लंदन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन किया और अब तक भारत सचिव द्वारा किए जा रहे कुछ कार्यों को उच्चायुक्त स्थानांतरित कर दिया गया।
इस कानून ने संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया।
इस अधिनियम के तहत लोक सेवा आयोग का गठन, जो 1926 में केंद्रीय लोकसेवा आयोग के नाम से जाना गया।
इस कानून में केंद्रीय बजट को राज्य बजट से अलग कर दिया।
इसके बाद एक वैधानिक आयोग का गठन हुआ जो 10 वर्ष बाद जांच करके अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
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