महाभारत में अर्जुन की प्रतिज्ञा का क्या रहस्य था – Secret of Arjun Pratigya

Secret of Arjun Pratigya:

महाभारत काल में अर्जुन को प्रत्येक व्यक्ति जानता है। युद्ध भूमि में अपनी कुशलता और दक्षता दिखाने वाले महावीर और युद्धवीर हैं अर्जुन। महाभारत में अर्जुन से जुड़ी कई गाथाएं हैं। अर्जुन श्री कृष्ण के प्रिय सखा थे इसलिए श्री कृष्ण महाभारत युद्ध में उनके सारथी बने थे। उस दौरान कुछ ऐसा हुआ जिससे अर्जुन बहुत क्रोधित हुए। आइये जानते है महाभारत में अर्जुन की प्रतिज्ञा का क्या रहस्य था ( Secret of Arjun Pratigya)।

महाभारत में अर्जुन की प्रतिज्ञा का क्या रहस्य था – Secret of Arjun Pratigya

 महाभारत में अर्जुन की प्रतिज्ञा का क्या रहस्य था - Secret of Arjun Pratigya
Secret of Arjun Pratigya

एक बार महाभारत का भयंकर युद्ध चल रहा था। अर्जुन की अनुपस्थिति में पाण्डवों को पराजित करने के लिए द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की। अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया।

उसने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के छः चरण भेद लिए, लेकिन सातवें चरण में उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि सात महारथियों ने घेर लिया और उस पर टूट पड़े। जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर जोरदार प्रहार किया। वह वार इतना तीव्र था कि अभिमन्यु उसे सहन नहीं कर सका और वीरगति को प्राप्त हो गया।

अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन क्रोध से पागल हो उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि यदि अगले दिन सूर्यास्त से पहले उसने जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्मदाह कर लेगा। जयद्रथ भयभीत होकर दुर्योधन के पास पहुँचा और अर्जुन की प्रतिज्ञा के बारे में बताया।

दुर्योधन उसका भय दूर करते हुए बोला- चिंता मत करो, मित्र! मैं और सारी कौरव सेना तुम्हारी रक्षा करेंगे। अर्जुन कल तुम तक नहीं पहुँच पाएगा। उसे आत्मदाह करना पड़ेगा। अगले दिन युद्ध शुरू हुआ।
अर्जुन की आँखें जयद्रथ को ढूँढ रही थीं, किंतु वह कहीं नहीं मिला। दिन बीतने लगा। धीरे-धीरे अर्जुन निराशा बढ़ती गई। यह देख श्रीकृष्ण बोले- पार्थ समय बीत रहा है और कौरव सेना ने जयद्रथ को रक्षा कवच में घेर रखा है। अतः तुम शीघ्रता से कौरव सेना का संहार करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो।

श्रीकृष्ण की माया –

Secret of Arjun Pratigya

यह सुनकर अर्जुन का उत्साह बढ़ा और वह जोश से लड़ने लगे। लेकिन जयद्रथ तक पहुँचना मुश्किल थ। संध्या होने वाली थी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी माया फैला दी। इसके फलस्वरूप सूर्य बादलों में छिप गया और संध्या का भ्रम उत्पन्न हो गया। संध्या हो गई है और अब अर्जुन को प्रतिज्ञावश आत्मदाह करना होगा। यह सोचकर जयद्रथ और दुर्योधन खुशी से उछल पड़े। अर्जुन को आत्मदाह करते देखने के लिए जयद्रथ कौरव सेना के आगे आकर अट्टहास करने लगा।

जयद्रथ को देखकर श्रीकृष्ण बोले- पार्थ! तुम्हारा शत्रु तुम्हारे सामने खड़ा है। उठाओ अपना गांडीव और वध कर दो इसका। वह देखो अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है। यह कहकर उन्होंने अपनी माया समेट ली।

देखते-ही-देखते सूर्य बादलों से निकल आया। सबकी दृष्टि आसमान की ओर उठ गई सूर्य अभी भी चमक रहा था। यह देख जयद्रथ और दुर्योधन के पैरों तले जमीन खिसक गई। जयद्रथ भागने को हुआ लेकिन तब तक अर्जुन ने अपना गांडीव उठा लिया था।

अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरी हुई  –

Secret of Arjun Pratigya

तभी श्रीकृष्ण चेतावनी देते हुए बोले- हे अर्जुन ! जयद्रथ के पिता ने इसे वरदान दिया था कि जो इसका मस्तक जमीन पर गिराएगा, उसका मस्तक भी सौ टुकड़ों में विभक्त हो जाएगा। इसलिए यदि इसका सिर ज़मीन पर गिरा तो तुम्हारे सिर के भी सौ टुकड़े हो जाएँगे। हे पार्थ! उत्तर दिशा में यहाँ से सो योजन की दूरी पर जयद्रथ का पिता तप कर रहा है। तुम इसका मस्तक ऐसे काटो कि वह इसके पिता की गोद में जाकर गिरे।

अर्जुन ने श्रीकृष्ण की चेतावनी ध्यान से सुनी और अपनी लक्ष्य की ओर ध्यान कर बाण छोड़ दिया। उस बाण ने जयद्रथ का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे लेकर सीधा जयद्रथ के पिता की गोद में जाकर गिरा।

जयद्रथ का पिता चौंककर उठा तो उसकी गोद में से सिर ज़मीन पर गिर गया। सिर के जमीन पर गिरते ही उनके सिर के भी सौ टुकड़े हो गए। इस प्रकार अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरी हुई।

 

 

 

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