शिवजी को शंख से जल क्यों नहीं चढ़ाते – Shivji ko Shankh se Jal Kyo Nahi Chadhate

Shivji ko Shankh se Jal Kyo Nahi Chadhate:

क्या आप जानते है भगवान शिव को शंख से जल अप्रीत नहीं करते है। बाकी सभी देवी – देवताओ को शंख से जल देने का विधान है। तो ऐसा क्या कारण है जिससे शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाते है। ये कारण जानने के लिए बने रहिये हमारे इस आर्टिकल के साथ की क्यों शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाते (Shivji ko Shankh se Jal Kyo Nahi Chadhate ) है।

शिवजी को शंख से जल क्यों नहीं चढ़ाते – Shivji ko Shankh se Jal Kyo Nahi Chadhate

 शिवजी को शंख से जल क्यों नहीं चढ़ाते - Shivji ko Shankh se Jal Kyo Nahi Chadhate
Shivji ko Shankh se Jal Kyo Nahi Chadhate

भगवान शिव को शंख से जल न चढाने की क्या कहानी है –

Shivji ko Shankh se Jal Kyo Nahi Chadhate

शिवपुराण के अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने भगवान विष्णु के लिए कठिन तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए।

भगवान विष्णुजी ने वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने तीनों लोको के लिए अजेय एक महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। श्रीहरि विष्णु तथास्तु बोलकर अंतध्र्यान हो गए। तब दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा।

शंखचुड ने पुष्कर में ब्रह्माजी के निमित्त घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने वर मांगने के लिए कहा तब शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्ण कवच दिया। साथ ही ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। फिर वे अंतध्यान हो गए।

तुलसी और शंखचूड का विवाह-

ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया।  देवताओं ने त्रस्त होकर श्रीहरि विष्णु से मदद मांगी परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था।

अतः उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे तब विष्णु ने ब्राह्मण रूप बनाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया।

इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। अब भगवान शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु भगवान शिव ने चूंकि उसका वध किया था। अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसी वजह से शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।

 

 

 

 

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