आज इस आर्टिकल में हम पिट्स इंडिया एक्ट 1784 – What is Pitt’s India Act 1784 संबंधित जानकारियों देने वाले हैं बस आप हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें, हमारे इस आर्टिकल को पढ़कर आपके मन में पिट्स इंडिया एक्ट से संबंधित जितने भी प्रश्न होंगे आपको उन सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंग।
पिट्स इंडिया एक्ट 1784 क्या है – What is Pitt’s India Act 1784
Introduction:
-कंपनी शासन की शुरुआत: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी वर्ष 1600 में एक व्यापारिक कंपनी के रूप में स्थापित हुई थी और वर्ष 1765 में एक शासकीय निकाय में बदल गई थी।
-आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप: बक्सर की लड़ाई (वर्ष 1764) के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व एकत्र करने का अधिकार) मिला तथा धीरे-धीरे यह भारतीय मामलों में हस्तक्षेप करने लगी।
-प्राप्त शक्ति द्वारा शोषण: वर्ष 1765-72 की अवधि में सरकार की व्यवस्था में द्वैत शासन देखा गया जहाँ कंपनी के पास अधिकार तो थे लेकिन कोई -ज़िम्मेदारी नहीं थी जबकि इसके भारतीय प्रतिनिधियों के पास सभी ज़िम्मेदारियाँ थीं लेकिन कोई अधिकार नहीं था। इसका परिणाम निम्नलिखित के रूप में देखा गया:
-कंपनी के कर्मचारियों के बीच बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार।
-अत्यधिक राजस्व संग्रह और किसानों का उत्पीड़न।
-कंपनी का दिवाला, जबकि इसके अधिकारी फल-फूल रहे थे।
-ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया: व्यवसाय को निश्चित दिशा देने के लिये ब्रिटिश सरकार ने कानूनों में क्रमिक वृद्धि के साथ कंपनी को विनियमित करने का निर्णय लिया।
पिट्स इंडिया एक्ट 1784 क्या है – What is Pitt’s India Act 1784
Regulating ACT 1773 :
-अधिकार कंपनी के पास सुरक्षित: इस अधिनियम ने कंपनी को भारत में अपनी क्षेत्रीय संपत्ति बनाए रखने की अनुमति दी, लेकिन कंपनी की गतिविधियों और कामकाज को विनियमित करने की मांग की।
-भारतीय मामलों पर नियंत्रण: इस अधिनियम के माध्यम से पहली बार ब्रिटिश कैबिनेट को भारतीय मामलों पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया गया था।
-गवर्नर-जनरल का परिचय: इसने बंगाल के गवर्नर के पद को बदलकर “बंगाल के गवर्नर-जनरल” कर दिया।
-बंगाल में प्रशासन गवर्नर-जनरल और 4 सदस्यों वाली एक परिषद द्वारा चलाया जाना था।
-वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया था।
-बॉम्बे और मद्रास के गवर्नर अब बंगाल के गवर्नर-जनरल के अधीन कार्य करते थे।
-सुप्रीम कोर्ट की स्थापना: बंगाल (कलकत्ता) में एक सुप्रीम कोर्ट ऑफ ज्यूडिचर की स्थापना की जानी थी, जिसमें अपीलीय क्षेत्राधिकार शामिल थे, जहाँ सभी मामलों के निवारण की मांग की जा सकती थी।
-इसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश शामिल थे।
-वर्ष 1781 में अधिनियम में संशोधन किया गया था और गवर्नर-जनरल, परिषद तथा सरकार के कर्मचारियों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय यदि कोई कृत्य करते हैं तो उन्हें अधिकार क्षेत्र से छूट प्रदान की गई थी।
Pitt’s India Act 1784:
-दोहरी नियंत्रण प्रणाली: इसने ब्रिटिश सरकार और ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियंत्रण की दोहरी प्रणाली की स्थापना की।
-कंपनी, राज्य का एक अधीनस्थ विभाग बन गई और भारत में इसके द्वारा अधिकृत क्षेत्रों को ‘ब्रिटिश संपत्ति’ कहा गया।
-हालाँकि इसने वाणिज्य और दिन-प्रतिदिन के प्रशासन पर नियंत्रण बनाए रखा।
Establishment of Board of Directors and Board Control.
-नागरिक, सैन्य और राजस्व मामलों पर नियंत्रण रखने के लिये कंपनी के एक बोर्ड ऑफ कंट्रोल का गठन किया गया था। इसमें शामिल थे:
– राजकोष के चांसलर
– राज्य का एक सचिव
– प्रिवी काउंसिल के चार सदस्य (क्राउन द्वारा नियुक्त)
– महत्त्वपूर्ण राजनीतिक मामले, ब्रिटिश सरकार के सीधे संपर्क में तीन निदेशकों (निदेशकों के न्यायालय) की एक गुप्त समिति के लिये आरक्षित थे।
– गवर्नर-जनरल और कमांडर-इन-चीफ: गवर्नर-जनरल की परिषद को कमांडर-इन-चीफ सहित तीन सदस्यों तक सीमित कर दिया गया था।
– वर्ष 1786 में लॉर्ड कॉर्नवालिस को गवर्नर-जनरल और कमांडर-इन-चीफ दोनों की शक्ति प्रदान की गई थी।
– यदि वह निर्णय की ज़िम्मेदारी लेता है तो उसे परिषद के निर्णय को ओवरराइड करने की अनुमति दी गई थी।
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