हुमायूं कौन था ? – Who Was Humayun

Who Was Humayun ?: हुमायूं एक प्रख्यात मुगल शासक थे। हुमायूं का जन्म 6 मार्च 1508 में काबुल में हुआ था। हुमायूं के पिता का नाम बाबर और माता का नाम माहम बेगम था। बचपन में सब उन्हें नसीरुद्दीन मोहम्मद हुमायूं कह कर पुकारते थे वह बाबर के सबसे बड़े और लाडले पुत्र थे भारत  के उन सभी अभियानों में भाग लिया, जिनका नेतृत्व बाबर ने किया था।

हुमायूं कौन था ? – Who Was Humayun ?

हुमायूं कौन था ? - Who Was Humayun ?
हुमायूं कौन था ? – Who Was Humayun ?

हुमायूं का राज्याभिषेक – Humayun Coronation

मुगल वंश के संस्थापक बाबर की मौत के 4 दिन बाद 30 दिसंबर 1530 ईस्वी में बाबर की इच्छा अनुसार उनके बड़े बेटे हुमायूं को मुगल शासन की गद्दी पर बिठाया गया। और उनके राज्याभिषेक किया गया। बाबर ने अपने चार पुत्रों में मुगल साम्राज्य को लेकर लड़ाई ना हो और अपने अन्य पुत्र की उत्तराधिकारी बनने की इच्छा जताने से पहले ही अपने जीवित रहते हुए हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।इसके साथ ही बाबर ने चारों तरफ फैले अपने मुगल साम्राज्य को मजबूत बनाए रखने के लिए हुमायूं को आदेश देते हुए कहा कि मुगल साम्राज्य को चारों भाइयों में बांट दिया जाए।जिसके बाद आज्ञाकारी पुत्र हुमायूं ने अपने मुगल साम्राज्य को चारों भाइयों में बांट दिया। उसने अपने भाई कामरान मिर्जा को पंजाब, कंधार, काबुल, हिंदाल को अलवर और असकरी को संभल की सुबेदारी प्रदान कर दिया। यही नहीं हुमायूं ने अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को बदख्शा की जागीर भी सौंपी।

हालांकि, हुंमायूं द्धारा भाईयों को जागीर सौंपने का फैसला उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हुआ। इसकी वजह से उसे अपनी जिंदगी में कई बड़ी मुसीबतों का भी सामना करना पड़ा। वहीं उसका सौतेला भाई कामरान मिर्जा उसका बड़ा प्रतिद्धन्दी बना। हालांकि, हुंमायूं का अफगान शासको से कट्टर दुश्मनी थी, वहीं अफगान शासकों से लड़ाई में भी उसके भाईयों ने कभी सहयोग नहीं दिया जिससे बाद में हुंमायूं को असफलता हाथ लगी।

हुमायूं द्वारा लड़े गए युद्ध:- Battles Fought by Humayun

हुमायूं कौन था ? - Who Was Humayun ?
Battles fought by Humayun.

 1 कालिंजर पर आक्रमण (1531ई.)

 2 दोहरिया का युद्ध ( 1532 ई)

 3 चुनार पर घेरा(1532)

 4 बहादुर शाह से संघर्ष (1532 – 36)

  5 चौसा का युद्ध ( 26 जून, 1539 ई)

  6 बिलग्राम का युद्ध (17 मई, 1540)

1 ) कालिंजर पर आक्रमण (1531ई.)

हुमायूं का पहला सैथनक का अभियान बुंदेलखंड के कालिंजर के खिलाफ था। कालिंजर का शासक प्रताप रूद्र देव था। यह अभियान सफल नहीं रहा था। भारत की कमान संभालने के साथ ही हुमायूं ने सन 1531 ईसवी में अपने सीमा विस्तार करने के लिए कालिंजर के किले पर भी आक्रमण किया। उस समय कालिंजर के किले पर राजा रुद्रदेव का शासन था। कालिंजर के किले को भेज पाना इतना आसान नहीं था। पहाड़ियों पर बने होने के कारण यह किला अभेद था। लेकिन हुमायूं ने इस नामुमकिन को भी मुमकिन कर दिखाया। उन्होंने किले पर अपना कब्जा तो किया, परंतु ज्यादा समय तक उस के किले पर शासन नहीं कर पाए। कालिंजर के किले में अल्प अवधी शासन का कारण यह था कि उस समय अफ़गानों ने विद्रोह करना प्रारंभ कर दिया था। इस वजह से हुमायूं ने राजा रुद्रदेव से कुछ शर्तों पर संधि कर ली और राजा रुद्रदेव का पुनः शासन स्थापित हो गया।

2) चौसा का युद्ध ( 26 जून, 1539 ई)

साल 1539 में चौसा नामक जगह पर हुमायूं और शेख खां की सेना के बीच युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में मुगल सेना को भारी नुकसान हुआ और अफगान सेना ने जीत हासिल की। वहीं चौसा के युद्ध क्षेत्र से हुंमायूं ने किसी तरह अपनी जान बचाई।

इतिहासकारों के मुताबिक चौसा के युद्द में जिस भिश्ती का सहारा लेकर हुंमायूं ने अपनी जान बचाई थी, उसे हुंमायूं ने 24 घंटे के लिए दिल्ली का बादशाह का ताज पहनाया था, जबकि अफगान सरदार शेर खां की इस युद्द में महाजीत के बाद उसे ‘शेरशाह की उपाधि से नवाजा गया। इसके साथ ही शेर खां ने अपने नाम के सिक्के चलवाए।

Who Was Humayun ?

हुमायूं की मृत्यु (1556 ई.) 

 हुमायूं कौन था ? - Who Was Humayun ?
हुमायूं कौन था ? – Who Was Humayun ?

दिल्ली के तख्त पर बैठने के बाद यह हुमायूं का दुर्भाग्य था कि वह अधिक दिनों तक जिंदा नहीं रह सका। जनवरी, 1556 ईस्वी में “दीनपनाह” भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुमायूं की मृत्यु हो गई। हुमायूं के बारे में ईतिहासकार “लेनपूल” ने कहा है कि,हुमायूं गिरते पड़ते इस जीवन में मुक्त हो गया, ठीक उसी तरह, जिस तरह तमाम जिंदगी वह गिरते पड़ते चलते रहते थे। हुमायूं को अबुल फजल ने इंसान ए कामिल कह कर संबोधित किया है। हुमायूं अफ़ीम खाने का शौकीन था।

हुमायूं के बेटे का नाम जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर हुमायूं की जीवनी का नाम हुमायूंनामा है। जो उनकी बहन गुलबदन बेगम ने लिखी थी हुमायूं की मृत्यु के पश्चात। और हुमायूं की पत्नी ने हुमायूं के नाम पर “हुमायूं का मकबरा” बनवाया था।

 

 

 

 

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