History of Sheikh Salim Chishti
आगरा के पास मौजूद फतेहपुर सीकरी का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। उस समय यह शहर काफी शाही हुआ करता था। लेकिन आज भी यह शहर मुगल साम्राज्य के आदेशों और विरासत को समेटे हुए हैं। इसे 1571 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा बनवाया गया था। 12 वीं शताब्दी में शुंग वंश और बाद में राजपूतो के शासन के दौरान यहां कई छोटे-छोटे और विभिन्न प्रकार के स्मारकों और किलो को बनवाया गया था। माना जाता है कि अकबर ने फतेहपुर सीकरी बनवाते समय इन्हें तूड़वा दिया था। लेकिन 1586 में शहर में पानी की कमी की वजह से राजधानी को फतेहपुर सीकरी से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया था। चलिए आज हम फतेहपुर सीकरी के सूफी संत सलीम चिश्ती के बारे में जानते हैं।
शेख सलीम चिश्ती का इतिहास – History of Sheikh Salim Chishti

सलीम चिश्ती कौन था।
सलीम चिश्ती अजमेर के ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के पौत्र थे। जब बादशाह अकबर द्वारा संतान प्राप्ति की दिशा में किए गए सभी प्रयास में निष्फल रहे तो वह स्वप्न में आए निर्देश के मुताबिक बाबा सलीम चिश्ती के पास आए उन्हीं के आशीर्वाद से अकबर को महारानी मरियम उज जनानी से पुत्र प्राप्ति हुई और बाबा के नाम पर उसका नाम भी सलीम रखा गया बाबा सलीम चिश्ती के सम्मान में ही बादशाह अकबर ने बुलंद दरवाजा बनवाया था। उसके बाद अकबर ने फतेहपुर सिकरी को अपनी राजधानी भी बनवाया।लेकिन केवल 15 साल में ही उसे अपनाया निर्णय बदलना पड़ा। यहां पर बादशाह अकबर का महल भी है जो कि भारत सरकार के पुरातत्व संरक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है। यहां पर जोधा बाई महल, पंचमहल,अस्तबल, पच्चीसी दरबार, दीवान ए खास, दीवान ए आम, बीरबल महल, अनूप ताला भी है जहां पर सुरसम्राट तानसेन अपना संगीत सुनाते थे।
शेख सलीम चिश्ती का मकबरा

शेख सलीम चिश्ती का मकबरा 16वीं सदी के आरंभ में निर्मित एक सुंदर और भव्य संरचना है। प्रसिद्ध मुगल सम्राट अकबर ने बेटा होने की भविष्यवाणी करने वाले सूफी संत सलीम चिश्ती को श्रद्धांजलि के रूप में इस मकबरे का निर्माण करवाया था।बहुत लंबे समय तक बेटे के लिए प्रार्थना करने के बाद अकबर ने उम्मीद छोड़ दी थी। संत का आशीर्वाद सच हुआ और जल्दी अकबर को एक बेटा हुआ।
शेख सलीम चिश्ती का मकबरा विस्तृत सफेद संरचना एक चमत्कार है और आज भी सभी धर्म और मान्यताओं को मारने वाले और सभी क्षेत्रों के लोगों को यह जगह आकर्षित करती है। यह सुंदर संगमरमर की कब्र भारत में मुगल वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण है। यह कब्र बुलंद दरवाजे के सामने और जनाना रोजा के पास स्थित है। यह समाधि एक उठे हुए मंच पर बनी है और कोर्स में प्रवेश करने के लिए 5 सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना होता है। यह कब्र मुख्य हॉल के केंद्र में रखी गई है। जो एक अर्ध वृताकार गुंबद के रूप में स्थित है।
बुलंद दरवाजे का इतिहास – History of Buland Darwaza

You must be logged in to post a comment.