महाभारत में पांडवो के जन्म की कथा – Story of Birth of Pandavas

महाभारत काल में युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, और सहदेव ये पांच पांडव पात्र रहे हैं। पांडव हस्तिनापुर के राजा पाण्डु और उनकी दो पत्नियों कुंती व माद्री के पुत्र थे। वे बेहद ही शक्तिशाली और कुशल पुत्र थे। पांडव के जन्म की कहानी बेहद ही दिलचस्प है। जानते है आज के इस आर्टिकल में पांडवो के जन्म की क्या कहानी है।

महाभारत में पांडवो के जन्म की कथा – Story of Birth of Pandavas

 महाभारत में पांडवो के जन्म की कथा - Story of Birth of Pandavas
Story of Birth of Pandavas

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धृतराष्ट्र जन्म से ही अन्धे थे इसलिए उनकी जगह पर पाण्डु को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया था। इससे धृतराष्ट्र को सदा अपनी नेत्रहीनता पर क्रोध आता और उन्हें पाण्डु से द्वेषभावना होने लगती पाण्डु ने कुछ ही समय में सम्पूर्ण भारतवर्ष को जीतकर कुरु राज्य की सीमाओं का यवनों के देश तक विस्तार कर दिया।

किन्दम ऋषि ने पाण्डु को शाप दिया-

एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों- कुन्ती तथा माद्री के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ। पाण्डु ने तत्काल ही अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुये मृगरूपधारी किन्दम ऋषि ने पाण्डु को शाप दिया- राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। जब कभी भी तू मैथुनरत होगा, तेरी भी मृत्यु हो जायेगी।

इस शाप से पाण्डु अत्यन्त दुःखी हुए और अपनी रानियों से बोले – हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग करके इस वन में ही रहूँगा, तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ। उनके वचनों को सुनकर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिये। पाण्डु ने उनके अनुरोध को स्वीकार करके उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी।

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 महाभारत में पांडवो के जन्म की कथा - Story of Birth of Pandavas
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इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन ऋषि- मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिये जाते हुए देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता। हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं। ऋषि-मुनियों की बात पाण्डु अपनी पत्नी से बोले मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है, क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि ऋण, देव ऋण तथा मनुष्य- ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?

कुन्ती को दुर्वासा ऋषि का वरदान-

कुन्ती बोली दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है, जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ। इस पर पाण्डु ने धर्म को आमन्त्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुन्ती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। कालान्तर में पाण्डु ने कुन्ती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को उस मन्त्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्विनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ।

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पाण्डु की मृत्यु –

एक दिन पाण्डु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा। तभी किन्दम ऋषि के शापवश उनकी मृत्यु हो गई। माद्री ने इसके लिए स्वयं को ही दोषी माना और वह भी पाण्डु के साथ ही सती हो गई, किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्ती हस्तिनापुर लौट आई। वहाँ रहने वाले ऋषि-मुनि पाण्डवों को राजमहल छोड़कर आ गये। ऋषि-मुनि तथा कुन्ती के कहने पर सभी ने पाण्डवों को पाण्डु का पुत्र माना और उनका स्वागत किया।

 

 

 

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